संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी के लिए तमाम कोशिशें करना तभी कारगर व उचित होगा जब हम पहले अपने व्यवहार में हिंदी को बरतेंगे। ये कहना है उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी का। रविवार को हिंदी दिवस के दिन आयोजित संवाद कार्यक्रम में उन्होंने हिंदी-राजभाषा, शिक्षण, रोजगार, भविष्य व चुनौतियां विषय पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में उन्होंने अपनी बात रखी। कार्यक्रम में विवि के सभी निदेशक, शिक्षक व शिक्षणेत्तर कार्मिक जुड़े रहे साथ ही राज्य भर से भी साहित्य व हिंदी के सुधिजन जुड़े रहेो. हिंदी दिवस पर हुए इस व्याख्यान में प्रो. लोहनी ने कहा कि 76 सालों में हिंदी को हम राजभाषा नहीं बना पाए हैं हमारे न्यायालयों से लकर मंत्रालयो व दफ्तरों के प्रपत्रों में अंग्रेजी हावी है। उन्होने अपने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान के अनुभव साझा करते हुए कहा कि हमने उस वक्त होर्डिग्स से लेकर प्रचारी सामग्री हिंदी में छापे जाने की बात मजबूती से रखी और उस पर अमल हुआ। राष्ट्रमंडल खेलो के जरिये हिंदी का संदेश पूरी दुनिया में गया। तो इस तरह के अभियान हमें पहल करके लेने होंगे तभी हम हिंदी को सबसे पहले तो राजभाषा बना पाएंगे फिर संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा। प्रो, लोहनी ने कहा कि उत्तराखंड मुक्त विवि के वेबसाइट के हिंदी संस्करण को जारी करने का मकसद भी यही है कि विद्यार्थी को अपनी भाषा के प्रति अनुराग तो पैदा हो. फार्म भरने में कई तरह की गलतियां हो जाती हैं अपनी भाषा में जब हम कोई काम करते हैं तो गलतियां होने की आशंकाएँ कम हो जाती हैं। न केवल इससे विवि के शिक्षार्थियों को सहूलियत होगी बल्कि अपनी भाषा के प्रति आत्मगौरव व आत्मविश्वास भी आएगा. हिंदी को लेकर आगे भी कई प्रयास किये जाएंगे जिससे शिक्षा का समावेशी व लोकतांत्रिक बनाया जा सके। प्रो. लोहनी ने कहा कि सोशल मीडिया के आने के बाद की हिंदी को हमें खुले दिल से अपनाने की जरूरत है हिंदी तभी समृद्ध होगी बहुत शुद्तावादी आग्रह रखेंगे तो हिंदी के बोलने वाले कम होते जाएंगे. उन्होंने हिंदी को बढ़ाने में प्रवासी भारतीयों के योगदान पर भी चर्चा की और बताया कि मेरठ विवि मे रहते हुए उन्होंने प्रवासी साहित्य को हिदी पाठ्यक्रम मे एक प्रश्न पत्र के रूप में शामिल किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय से प्रो. गिरिजा प्रसाद पांडे,प्रोफेसर रेनू प्रकाश, प्रो. जितेन्द्र पांडे, प्रो. राकेश चन्द्र रयाल, डा. शशांक शुक्ला, डा.सुशील उपाध्याय व डा. नरेन्द्र सिजवाली समेत कई प्राध्यापक व कर्मचारी मौजूद रहे।