हल्द्वानी। नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश में लोकायुक्त मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को आठ सप्ताह में नियुक्ति के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने फिलहाल लोकायुक्त ऑफिस के खर्चे पर भी रोक लगा दी है। मामले में अगली सुनवाई 10 अगस्त की तिथि तय की गई है।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने हल्द्वानी गौलापार निवासी रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता के अनुसार, राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है। जबकि संस्थान के नाम पर सालाना दो से तीन करोड़ खर्च हो रहा है। कर्नाटक में व मध्य प्रदेश में लोकायुक्त के माध्यम से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जा रही है। लेकिन उत्तराखंड में हर एक छोटे से छोटा मामला उच्च न्यायालय में लाना पड़ रहा है।
वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन है, जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में है। उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नही है जिसके पास यह अधिकार हो की वह बिना शासन की पूर्वानुमति के, किसी भी राजपत्रित अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत कर सके। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला सतर्कता विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है, जिसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है। एक पूरी तरह से पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था राज्य के नागरिकों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यही है की पूर्व के विधानसभा चुनावों में राजनैतिक दलों द्वारा राज्य में अपनी सरकार बनने पर प्रशासनिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एक सशक्त लोकायुक्त की नियुक्ति का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ।
यहां बता दे कि पिछली तिथि को कोर्ट ने सरकार से शपथपत्र के माध्यम से यह बताने को कहा था कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अभी तक क्या किया और संस्थान जब से बना है तब से 31 मार्च 2023 तक इस पर कितना खर्च हुआ, इसका वर्षवार विवरण पेश करने को कहा था। जवाब में सरकार की ओर से बताया गया कि वर्ष 2010-11 से अब तक आवंटित 36 करोड़ में से करीब 30 करोड़ खर्च हो चुके हैं। इस साल भी दो करोड़ 44 लाख आवंटन किया गया है।