श्रीनगर। उत्तराखंड भाकपा (माले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी ने उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी को 65 वर्ष की आयु सीमा पूरी करने के बाद भी तीन वर्ष के पूरे कार्यकाल तक पद पर बने रहने का आदेश जारी किया जाना विधि विरुद्ध बताया है। उन्होने कहा कि बिना कैबिनेट की संस्तुति तथा अध्यादेश के इस तरह एक मनमाने आदेश के जरिये कुलपति की आयु सीमा नहीं बढ़ाई जा सकती है।
प्रेस को जारी बयान में इंद्रेश ने कहा कि कुलपति पद पर नियुक्त व्यक्ति की आयु सीमा वर्तमान में प्रदेश में 65 वर्ष है। 20 जुलाई 2022 को जब उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर जब पुनः प्रो.ओपीएस नेगी की नियुक्ति की गयी थी तो उनके नियुक्ति पत्र में लिखा था कि तीन वर्ष अथवा अधिवर्षिता आयु पूर्ण करने तक, इनमें से जो भी पहले हो। अब जबकि प्रो.ओपीएस नेगी अपनी अधिवर्षिता आयु पूरी कर चुके हैं तो उनको तीन वर्षों तक पद पर बने रहने का आदेश उत्तराखंड राजभवन द्वारा जारी कर दिया गया है। हैरत की बात यह है कि उक्त आदेश जारी करने के लिए राजभवन ने खुद अपने पूर्व के आदेश को निरस्त कर दिया।
उत्तराखंड सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसकी ऐसी क्या मजबूरी है कि प्रो.ओपीएस नेगी को कुलपति पद पर सेवानिवृत्ति की आयु हो जाने के बाद भी रखना चाहती है। उत्तराखंड में कुलपतियों की अधिकतम आयु सीमा यदि 65 वर्ष है तो आखिर प्रो.ओपीएस नेगी के लिए इस नियम को गैरकानूनी तरीके से तोड़ने पर उत्तराखंड सरकार क्यूँ आमादा है ?
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रो. नेगी का कुलपति के तौर पर पहला कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा है। उनके कार्यकाल में नियुक्तियों में घोटाले समेत आर्थिक भ्रष्टाचार समेत तमाम मामले सामने आए। कुछ नियुक्तियों के संबंध में तो तत्कालीन राज्यपाल ने तक कहा कि नियुक्तियाँ उनकी जानकारी के बगैर की गयी हैं और राज्य सरकार के ऑडिट विभाग ने भी नियुक्तियों में भ्रष्टाचार को पकड़ा। इसके बावजूद उन्हें दूसरी बार कुलपति नियुक्त किया गया और अब तमाम नियम क़ानूनों को धता बताते हुए, तीन वर्ष तक पद पर बने रहने का आदेश जारी कर दिया गया है.
उन्होने कहा कि यह खुला भ्रष्टाचार है, नियम-क़ानूनों का उल्लंघन है, गैरकानूनी है। स्थापित वैधानिक प्रक्रिया का भी उल्लंघन है। अतः इस आदेश को तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए।