रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक के कुमोली गांव में जन्मे कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने भारतीय हिंदी साहित्य को स्वरचित पद्य क्षेत्र में अनमोल खजाने का तोहफा दिया था। किन्तु उनकी चिरस्मृति से जुड़े पवाँलिया नामक स्थान में उनके अंतिम दिनों का निवास स्थान खंडहर में तब्दील हो गया है। इतिहास में दर्ज इस महान हिमवंत कवि की जीवन की यादों से जुड़े पवाँलिया स्थान की सुध न लेना सरकार की हिंदी साहित्य के इतिहासकारों के प्रति उपेक्षा मानी रही है। स्थानीय लोगों ने यहां कवि के नाम का संग्रहालय बनाने की मांग भी की।
20 अगस्त 1919 में जन्मे कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल ने 28 वर्ष की उम्र में हिंदी पद्य साहित्य के क्षेत्र में अनेक कृतियां लिखी। हिंदी साहित्य के कालिदास माने जाने वाले बर्त्वाल बीमारी का शिकार हो गए थे। जिसके बाद वे अपने गांव को छोड़ एकांतवास पवाँलिया में निवासरत हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने अनेक कृतियों की रचना की थी, किन्तु यह स्थान आज जीर्णशीर्ण हो चुका है। इसके साथ ही उनकी जन्मभूमि मालकोटी में भी उनकी स्मृति को संजोने को लेकर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इसके अलावा 2 अक्तूबर 2017 को चमोली जिले के पोखरी क्षेत्र में आयोजित एक मेले में तत्कालीन पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कवि बर्त्वाल को लेकर कुछ घोषणाएं की थी। जिसमें कहा था कि विद्यालयों में पाठ्यक्रम में उनकी गढ़वाली कविताएं शामिल की जाएंगी। साथ ही मसूरी के बर्त्वाल शोध संस्थान से मालकोटी को जोड़ने का एलान किया था। जबकि उन्होंने पवाँलिया में चन्द्रकुंवर बर्त्वाल से सम्बंधित म्यूजियम बनाने की घोषणा भी थी। किन्तु अभी तक इन घोषणाओं पर ठोस पहल होती नहीं दिखी है। हर वर्ष 20 अगस्त को जिले के अनेक संस्थाएं उनके याद में कार्यक्रमों का आयोजन तो करते हैं। किन्तु यह यह सब आयोजन 19वीं सदी के प्रसिद्ध कवि के लिए नाकाफी हैं। इसके अलावा कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल के इतिहास को नए आयाम तक पहुंचाने को प्रयासरत सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र कण्डारी ने कहा कि वे लगातार पंवालिया के जीर्णोद्धार को लेकर मांग करते आ रहे हैं। कहा सरकार को यहां कवि का शीघ्र संग्रहालय बनाना चाहिए। जिससे से लोग यहां पहुंच कर उनके जीवन की स्मृतियों व कृतियों को जान सकेंगे।