विधानसभा चुनाव में टिहरी से कांग्रेस के टिकट का प्रबल दावेदार माने जा रहे किशोर उपाध्याय के साथ कुछ अजब ही खेला हो गया। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे किशोर को दूसरे दलों के साथ मिलीभगत कर कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है।
बुधवार को प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव ने किशोर उपाध्याय को पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करने वाला पत्र लिखा। पत्र में उल्लेख हुआ है कि प्रदेश की जनता कांग्रेस के पक्ष में है और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस के सभी सदस्यों की ड्यूटी है वह जनता द्वारा सौंपी जा रही जिम्मेदारियों को समझें और उसे पूरा करने के लिए जी जान से जुट जाए। लेकिन दुर्भाग्य से आप यानी किशोर उपाध्याय ऐसा नहीं कर रहे हैं। आरोप लगाया गया है कि अन्य दलों के नेताओं के साथ मिलकर वह पार्टी को कमजोर कर रहे हैं और इसी आरोप में उन्हें पार्टी की सभी जिम्मेदारियों के मुक्त किया जाता है। इस मामले में उनके खिलाफ पार्टी से निष्कासित करने की कार्रवाई भी हो सकती है।
किशोर उपाध्याय कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी रहे हैं और मंत्रिमंडल में भी शामिल रहे हैं। वर्ष 2017 में विधानसभा का चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ा गया था। उस चुनाव में किशोर उपाध्याय ने अपनी परम्परागत सीट टिहरी को छोड़कर सहसपुर से चुनाव लड़ा और बुरी तरह हार गये। किशोर उपाध्याय का मानना है कि तत्कालीन सीएम हरीश रावत के दबाव में ही उन्हें सहसपुर से चुनाव लड़ाया गया। पिछले दिनों जब पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटने लगी थी तो किशोर उपाध्याय ने इस पुराने मुद्दे को फिर से जीवित करते हुए हरीश रावत को अपनी हार के लिए जिम्मेदार ठहराया था। उसके बाद हरीश रावत ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए किशोर को आगाह करते हुए लिखा था कि उनकी सहनशक्ति की परीक्षा ना ली जाए।
इस घटना के बाद राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदले और किशोर उपाध्याय ने भाजपा के कुछ नेताओं से मुलाकात की। सपा नेता अखिलेश यादव से भी उनकी मुलाकात की बात सामने आई। यह कयास लगाया जाने लगा कि किशोर उपाध्याय भाजपा या सपा में शामिल हो सकते हैं। वह कोई निर्णय लेते उससे पहले पार्टी ने उन्हें सभी जिम्मेदारियों से बेदखल कर दिया।