• Fri. Nov 22nd, 2024

अबोध बालक हरक सिंह और लोकतंत्र का हमाम!


Spread the love

☞पार्थसारथि थपलियाल

जीवन मे नहाने के अवसर बहुत कम मिले। वजह तो आज तक भी पता नही चली। लेकिन मैं आभारी हूँ हरक सिंह रावत जी का, उनका मन अबोध बच्चे की तरह एकदम निष्कलंक, निष्कपट और बेदाग है। अगर मन में कुछ रहा भी होगा तो योग क्रिया से निकले अश्रु धारा पवित्र गंगा जल-से प्रवाहित हुई और धुल गया सब कुछ जैसे छठे दशक में सन लाइट और लाइफ बॉय साबुन से धुलते थे मैले कुचैले कपड़े। (याद आया वो लाल साबुन जिसकी बेइज्जती उस विज्ञापन से होती थी – “क्या भाई साहब अभी लाल में ही अटके हो?” बात ये भी नही है बात तो ये है कि उन्होंने “हमाम में सब नंगे” होने का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। अच्छा ! इसमें क्या कोई पॉलिटिक्स लगी आपको? भाई! नंगे हो तो वैसे ही ढक कर रखते जैसे संपति ढकी हुई है, उसे बताते तो कोई आंसू पोंछने में भी स्वार्थवश देखता। अपना नंगापन भहरत के लोकतंत्र की तरह क्यों प्रदर्शित करते हो?

मैं सोचने लगा क्या मैं कभी हमाम में नंगा हुआ? किसी पुराने जमाने के आधुनिक चिंतक की भांति माथा पकड़ कर बैठा लेकिन दिमाग मे कोई सीन नही उभरा जिसने मुझे याद दिलाया हो कि मैं कभी हमाम में नहाया हूँ। सही बात तो ये है कि हमें हमाम देखने का मौका भी नही मिला। लाइफ बॉय साबुन के बाद सातवें दशक में एक साबुन आता था “हमाम” इस साबुन में महक होती थी। तो हरक सिंह जी को बिलखते देख मेरा मन पसीजा और सोचने लगा भाई साहब हमाम में नहाने और हमाम से नहाने में बड़ा फर्क है।

इस दौर में हमाम से नहाने की बात कोई नही सुनेगा। हमाम में नंगे होने पर, आपातकाल में हर कोई तौलिया ढूंढने के प्रयास करेगा।
ये तो भारत की जनता जानती ही है कि जिस आदमी को नाली साफ करते कभी नही देखा वह नाला साफ करने का घोषणा और वादा करता है। “आप” भी तो!

अरे “आप” भी तो यही कर रही है। उसके पास तो हमाम साबुन भी नही। लोकतंत्र के सारे गुर सिखा रहा है। “इंडिया अगैस्ट करप्शन” के हमाम में से निकला अन्ना अन्ना करते हुए आधुनिक लोकतंत्र का वैज्ञानिक बन गया। उसने सब वोटर को ही करप्ट बना दिया। हो सकता है लोककल्याण के कार्यों में व्यस्त रहने से आपको फुरसत न मिली हो, वरना दिल्ली में तो सब फ्री।

बिजली फ्री, पानी फ्री, यात्रा फ्री, हॉस्पिटल फ्री … और न जाने क्या क्या फ्री… जैसे दंतेवाड़ा के जंगलों में मिलता है। भाई साहब अभी देर नही हुई पंजाब में भी पर्चा भर सकते हो। स्टाइल दिल्लीवालों की ही रखनी। पंचकोणीय मुकाबले में इंडिपेंडेंट भी जीत सकता है। मधु कोड़ा मंत्र का जाप कर लो । उस दौरान किसी महिला का चित्र भी ख्वाब में नही एना चाहिए। मुख्यमंत्री भी बन सकते हो। आपको सिर्फ इतना कहना है कि पांच साल तक हर पुरुष के -“पीने”की व्यवस्था फ्री, महिलाओं को दो हज़ार रुपये हर महीने घर खर्च के लिए दिए जाएंगे। …क्या? मन में सवाल उठ रहा है कि इतना तो पंजाब का बजट ही नही होता।

भाई साहब इतने ज्ञानी बनोगे तो इनकमटैक्स वाले और ई.डी. वाले आपके प्रोजेक्ट्स, कॉलेज और बाकी धंधों को भी जानते होंगे। काहे इतना दिमाग लगते हो। क्या जो “आप का न बाप का” वो एक करोड़ 86 हज़ार महिला मतदाताओं को 1000 रुपये हर महीने दे पाएगा? एक करोड़ महिला मतदाताओं पर ही एक महीने में दस लाख करोड़ की जरूरत पड़ेगी। पंजाब का एक साल का बजट एक लाख अड़सठ हज़ार पंद्रह करोड़ रुपये का है। यही तो लोकतंत्र की खासियत है। यहां हमाम में लोग नंगे हो या न हों लेकिन हमें से लोकतंत्र में सब नंगे दिखाई देते हैं , बोलता कोई नहीं यही तो लोकतंत्र है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
नॉर्दर्न रिपोर्टर के लिए आवश्यकता है पूरे भारत के सभी जिलो से अनुभवी ब्यूरो चीफ, पत्रकार, कैमरामैन, विज्ञापन प्रतिनिधि की। आप संपर्क करे मो० न०:-7017605343,9837885385