उत्तराखंड की सियासत से जुड़े कुछ मिथक हैं, जो शुरुआत से अब बरकरार हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने भी यह मिथक चुनौती बनकर खड़े हैं। पहला मिथक तो खुद मुख्यमंत्री पद से जुड़ा है। राज्य के इतिहास में जो भी विधायक मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव लड़ा, वह जीत नहीं सका या फिर उसने अगला चुनाव लड़ा ही नहीं। साल-2002 में एकमात्र भगत सिंह कोश्यारी इसके अपवाद रहे। उनकी सरकार तो वापस नहीं आई, लेकिन वे विधायक (सदन में नेता प्रतिपक्ष) के तौर पर कुर्सी पाने में कामयाब रहे। यानी उनके अलावा मुख्यमंत्री पद पर रहा नेता कंटीन्यूटी में विधायक नहीं बन पाया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से लेकर पिछली विधानसभा के दौरान मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत तक सभी इस मिथक का उदाहरण हैं।
एक प्रसिद्ध मिथक तो उत्तरकाशी की गंगोत्री सीट को लेकर है, जो उत्तर प्रदेश के समय से ही चला आ रहा है। गंगोत्री को लेकर कहा जाता है “गंगोत्री जिसके साथ, सत्ता उसके हाथ”। गंगोत्री विधानसभा सीट पर जो भी पार्टी अब तक विजेता रही है, राज्य में सरकार भी उसी की बनी है।
उत्तराखंड की सियासत के मिथकों के बारे में जानिए
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यहां तक कि एक रोचक घटनाक्रम में भी इस मिथक को सच होते देखा गया। मार्च-2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार विधायकों की बगावत के कारण गिर गई। तब विद्रोही दल के नेता विजय बहुगुणा के करीबी होने के बावजूद गंगोत्री के विधायक ने कांग्रेस को नही छोड़ा। मामला कोर्ट गया, सबकी निगाह गंगोत्री वाले मिथक पर थी और हुआ भी यही कि गंगोत्री विधायक के साथ वाली हरीश सरकार बहाल हो गई। इसलिए, पुष्कर सिंह धामी के पास यह चुनौती है कि गंगोत्री सीट को दोबारा जीतकर दिखाएं, क्योंकि राज्य बनने के बाद से यह सीट कभी भी किसी एक दल के पास दोबारा नहीं आई है। अभी यह सीट भाजपा के पास है। धामी के लिए या एक बड़ी चुनौती है कि वह गंगोत्री सीट को फिर से भाजपा के लिए हासिल कर इस मिथक को तोड़ें।
एक अन्य मिथक मुख्यमंत्री आवास को लेकर है। जो भी इस आवास में गया या रहा। वह बतौर सीएम न तो अपना कार्यकाल पूरा कर पाया पर न दोबारा मुख्यमंत्री बन पाया। मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था। भवन बनने से पहले ही तिवारी का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद बीसी खंडूड़ी ने इस बंगले का उद्घाटन किया और ढाई साल बाद ही कुर्सी खिसक गई। फिर रमेश पोखरियाल निशंक सीएम बने। निशंक भी इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। चुनाव से ठीक छह महीने निशंक को मुख्यमंत्री पद से बाहर होना पड़ा और सरकार की कमान एक बार फिर बीसी खंडूड़ी के हाथों में दी गई। लेकिन खंडूड़ी चुनाव हार गए।
इसके बाद कांग्रेस के विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने, लेकिन दो साल बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री आवास से बाहर होना पड़ा। बाद में मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र सिंह रावत को जब उनके समर्थकों ने आवास से जुड़े अपकुशन के बारे में चेताया तो वे नहीं माने। लेकिन मिथक ने अपना रंग दिखाया और त्रिवेंद्र चार साल पूरा करने से कुछ दिन पहले ही सत्ता से बाहर हो गए। इसके बाद तीरथ सिंह रावत भी सत्ता में न टिक सके। अब पुष्कर सिंह धामी इस बंगले में रह रहे हैं। अब यह 10 मार्च 2022 की तिथि ही बताएगी कि वे इस मिथक को तोड़कर दोबारा चुनाव जीतते हैं या उत्तराखंड के इतिहास में उनका नाम भी इसी मिथक की भेंट चढ़ जाएगा।