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बदल गए राजनीति के पैंतरे : जाति नही वर्ग के फैसले


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✍🏿पार्थसारथि थपलियाल

चुनाव आयोग ने 8 जनवरी 2022 को पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए चुनाव का शंखनाद किया था। ये राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा। फरवरी-मार्च में सात चरणों में मतदान सम्पन्न हुए। 10 मार्च को मतगणना सम्पन्न हुई, ये तथ्य सभी को ज्ञात हैं। वैसे तो हर चुनाव प्रत्याशियों के लिए महत्वपूर्ण होता है, लेकिन पांच राज्यों में सम्पन्न चुनाव कई अर्थों में महत्वपूर्ण हैं। पांच राज्यों में से चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी बहुमत में आ गई। पंजाब में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला।

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम वास्तव में चौंकाने वाले हैं। उत्तराखंड में 2021 मार्च से जुलाई के मध्य भाजपा ने दो मुख्य मंत्री बदले। तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के काल मे चुनाव जीतने के हथकंडे भी अपनाने थे और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (कांग्रेस) जिस ठसक के साथ चुनावी दंगल में उतरे उससे यह लग रहा था कि भाजपा को उत्तराखंड में भारी नुकसान होगा। ऐसा सोचने के पीछे एक कारण यह था कि आम आदमी पार्टी ने कर्नल (रि) अजय कोठियाल को अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में उतारा था। कोठियाल के प्रति स्थानीय जनता में स्वाभाविक आकर्षण था।

कर्नल कोठियाल के सपनों पर तब ग्रहण लग गया जब उत्तराखंड का प्रबुद्ध वर्ग आप के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध आ धमका कि रोहिंग्या प्रेमी को देवभूमि में नही जमने देंगे। कर्नल कोठियाल उत्तरकाशी जिले में अपनी गंगोत्री सीट नही बचा सके। आप का एक भी उम्मीदवार उत्तराखंड में नही जीत सका। कोंग्रेस के नेता हरीश रावत को मुस्लिम विश्वविद्यालय का आश्वासन ले डूबा। देवभूमि का इस्लामीकरण उत्तराखंड को बिल्कुल भी नही भाया। हरीश रावत अगर उत्तराखंड की राजनीति में न लौटते तो सोनिया दरबार मे उनकी ईज़्ज़त बची रहती। जिस सीट से वे चुनाव लड़े उसकी लाज न बचा सके।

हरीश रावत लालकुआं सीट से चुनाव लड़ रहे थे। रावत अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के मोहन सिंह बिष्ट से पराजित हुए। भाजपा के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी खटीमा सीट न बचा सके। यद्यपि भाजपा को प्रचंड सफलता दिलाने में धामी का योगदान जबरदस्त रहा। वे अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कोंग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी से मुकाबला करते हुए लगभग सात हज़ार मतों से पराजित हो गए। पुष्कर सिंह धामी ने अपने छोटे से मुख्यमंत्री काल में बहुत कम किये लेकिन वे उनके काम न आ सके।

इसी प्रकार त्रिवेंद्र सिंह रावत के चुनाव न लड़ने से खाली सीट पर भाजपा ने प्रखर वक्ता और उत्तराखंड की जमीनी हकीकत को अच्छी तरह जानने वाले बृज भूषण गैरोला को डोईवाला सीट पर प्रचंड जीत मिली है उनके सामने उत्तराखंड क्रांति दाल के राजकिशोर रावत प्रमुख प्रतिद्वंदी थे। यह संभव है कि संघ पृष्टभूमि के बृजभूषण गैरोला को नई सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। 70 सदस्यों की विधान सभा में भाजपा सदस्यों की संख्या लगभग 48 व कांग्रेस की 18 है। इस जीत में डबल इंजन की सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सांसद अनिल बलूनी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के योगदान को भी रेखांकित करना आवश्यक है। कोटद्वार जैसी चुनौती भरी सीट को निकालना सबसे अधिक कठिन था। यह जीत भाजपा के लिए होली का उपहार है। यह उत्तराखंड की उस परंपरा को तोड़ता है जिसमें एकबार भाजपा और एक बार कांग्रेस सरकार बनाती है। देखें मुख्यमंत्री कौन बनता है।

पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू, अध्यक्ष पंजाब कांग्रेस अपनी अमृतसर पूर्व सीट भी न बचा सके। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह को अपदस्थ करने में बड़बोले सिद्धू की ठोको ताली ने बड़ी भूमिका निभाई। सिद्धू की मुख्यमंत्री बनने की योजना धरी की धरी रह गई रह गई। “बहुत बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।” चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया और राहुल गांधी ने भावी मुख्यमंत्री चन्नी को घोषित कर दिया।

कांग्रेस किसी आदमी का तब तक उपयोग करती है जब तक वह दस जनपथ के लिए उपयोगी होता है। दस जनपथ का मतलब कोंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का निवास। कोंग्रेस का मतलब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा। कैप्टन को हटाने का परिणाम यह हुआ कि लोगों ने ठोको ताली की नौटंकी को स्वीकार नही किया और आम आदमी पार्टी के लोकलुभावन उपहारों को हार पहना दिया। कोंग्रेस की दुर्गति तो होनी ही थी लेकिन पंजाब के झंडाबरदार शिरोमणि अकाली दल की जो धुलाई मतदाताओं ने की सुखवीर सिंह बादल के अहंकार की उसकी कल्पना बादल ने नही की होगी। प्रकाश सिंह बादल और सुखवीर सिंह बादल दोनों चुनाव हार गए।

भाजपा के साथ अकाली दल ने किसान आंदोलन के समर्थन में संबंध विच्छेद कर दिया था। तब शिरोमणी अकालीदल को लगा कि भाजपा झुकेगी। ऐसा नही हुआ। यह बदली हुई भाजपा है यह अहंकार तोड़ने में माहिर है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक मत की कमी के कारण गिर गई थी। आज की भाजपा में ऐसा सोचा भी नही जा सकता। पंजाब में 117 सीटों में से “आप” को 92, कांग्रेस को 18 और भाजपा को 2 सीटें मिली।
कोंग्रेस की पंजाब नौटंकी खत्म। इसके साथ ही अब कोंग्रेस की सरकार राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपने बल पर है। महाराष्ट्र और झारखंड में कोंग्रेस मिलीजुली सरकार में है।
कोंग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि आनेवाले 3-4 महीनों में राज्यसभा की 19 सीटे खाली होंगी। इनमे से कई सदस्य कोंग्रेस पार्टी से हैं जो रिटायर हो रहे हैं। कोंग्रेस के सदस्यों की संख्या राज्यसभा में और कम हो जाएगी। जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर में भाजपा को बहुमत मिलने से राज्यसभा में एन डी ए के सदस्यों की संख्या बढ़ सकती है। अभी भाजपा के 97 सदस्य राज्यसभा में है।साथी दलों के सदस्यों की संख्या सहित यह संख्या 114 है। राज्य सभा मे साधारण बहुमत के लिए 122 सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता होती है।

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने जनता को जो राहत पहुंचाई, विकासकार्यों को गति दी, कोरोना काल मे जो व्यवस्थाएं स्थापित की, महिला सुरक्षा को प्राथमिकता और समाजविरोधी तत्वों का सफाया जैसे कार्य जनता को बहुत पसंद आये। मतदाताओं ने दिल खोलकर योगी को ही मान दिया। उत्तर प्रदेश में भाजपा को 403 में से 274 सीटें मिली, जबकि सपा को 124 सीटों पर संतोष करना पड़ा। 2 सीटें कांग्रेस को भी मिली। योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर में अपनी निकटतम प्रतिद्वंदी को एक लाख तीन हज़ार तीन सौ नव्वे मतों के अंतर से पराजित किया। सपा के प्रयास भी अच्छे रहे लेकिन एक परिवार की पार्टी बने रहना सपा के हर का एक कारण है। आश्चर्य बहुजन समाज पार्टी को लेकर भी है।दलितों, ब्राह्मणों और मुसलमानों को एक साथ जोड़ना भी पुराना फॉर्मूला है। बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने इस चुनाव में हथियार ही डाल दिये।

गोवा (40 सीटों में से भाजपा को 20, कांग्रेस को 12 सीटें मिली) और मणिपुर (60 सीटों में से 32 भाजपा को कांग्रेस को 5 सीटें शेष अन्य) में भी भाजपा की सरकारें बन रही हैं।
कोंग्रेस पुराने ज़माने के ज़मीदारों की तरह व्यवहार कर रही है। तीन लोगों का निर्णय पार्टी पर थोपा जाता है। उत्तर प्रदेश में कोंग्रेस के नाम पर प्रियंका गांधी वाड्रा अकेली ही मैदान में थी। राहुल गांधी मौसमी कलाकार है। वह कोंग्रेस को महात्मा गांधी की 1948 में व्यक्त इच्छा तक पहुंचाने में लगे हैं। एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल की इतनी बड़ी दुर्दशा पहले कभी नही थी। एक एक कर पुराने कोंग्रेसी बाहर का रास्ता पकड़ रहे हैं।

2014 के बाद राष्ट्रीय राजनीति में परिवर्तन हुआ है। तुष्टीकरण की नीति बंद। जातिगत राजनीति के स्थान पर वर्ग या क्लास राजनीति आ गई। महिला, मजदूर, व्यवसायी, विद्यार्थी, सर्विस क्लास, किसान आदि वर्ग खड़े हो रहे हैं। हिन्दू, मुस्लिम, ब्राह्मण, राजपूत, अनुसूचित जाति- जनजाति की अपेक्षा वर्ग स्थापित हो गए। कोंग्रेस अभी भी जातीय राजनीति पर टिकी है। भाजपा की विजय के पीछे मोदी जी का कुशल नेतृत्व, योगी जी का सुशासन, अमित शाह की रणनीति और जे पी नड्डा की लगन प्रमुख तत्व हैं।

इस विषय का अंत इस बात के साथ करना चाहता हूँ कि राजनीतिक बहसों में मीडिया में जब कोंग्रेस के प्रवक्ता अपने प्रवक्ता धर्म को निभाते हैं तब अंदरूनी तौर पर उन्हें कितना कष्ट होता है कि जिस पार्टी का पक्ष वे प्रबलता से रख रहे हैं वह किसी जर जर मकान से ज्यादा कुछ नही। 10 जनपथ की हठधर्मिता से कोंग्रेस अपने समापन की ओर बढ़ रही है। लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय वैचारिक मंथन के लोग विपक्ष में हों। क्षेत्रीय दल बार्गेनिंग करते हैं। कोंग्रेस इस शेर पर खरी उत्तर रही है।

न खुदा ही मिला न विशाल-ए-सनम
न इधर के रहे न उधर के रहे।।

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