देहरादून। बीकानेर(राजस्थान) में मार्बल की खदानों के बीच से 5करोड़ 20लाख साल पुराना चींटी का लार्वा मिला है। फासिल (जीवाश्म) के रूप में पाए गए इस लार्वे से करोड़ों साल से चले आ रहे विकास क्रम को समझने में वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी। इस फॉसिल को उत्तराखंड के हेमवती नंदन गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय (श्रीनगर) और रूस के वैज्ञानिकों ने खोजा है।
गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी प्रो. राजेंद्र सिंह राणा लंबे समय से जीवाश्मों पर अध्ययन कर रहे हैं। उनके निर्देशन में शोधकर्ता डॉ. रमन पटेल ने रुस के वैज्ञानिकों के सहयोग से पिछले कुछ समय से बीकानेर जिले में स्थित भूरा की खदानों में जीवाश्म की खोज मेें लगे थे। यहां उन्हे चींटी का लार्वा मिला। इसका आकार दो मिलीमीटर है। यह लार्वा ताजे पानी में मिला है। जो पहली बार रिपोर्ट हुआ है।
इससे पूर्व जर्मनी और म्यांमार में चींटी के जीवाश्म मिल चुके हैं। लेकिन चींटी के कर्मिक विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला लार्वा पहली बार मिला है।
प्रो. राणा ने बताया कि चींटी का लार्वा 5 करोड़ 20 लाख वर्ष पुराना है। यह लार्वा चट्टान के ऊपर फ्रेश वाटर में मिला है। लार्वा को अध्ययन के लिए संरक्षित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि लंबाई की दृष्टि से तुलना की जाए, तो वर्तमान की चीटिंयों और जीवाश्म रुप में मिले लार्वा में कोई अंतर नहीं है। लेकिन पैरों की बनावट में काफी अंतर है। लार्वा के पैर बड़े हैं। लार्वा की मदद से चीटियों के विकास को समझने में मदद मिलेगी। कई कालखंड पुराना लार्वा इतिहास के रहस्यों से पर्दा हटाएगा।