(🖋️पार्थसारथि थपलियाल)
जिज्ञासा- दिल्ली से भारत कुमार की जिज्ञासा है पोंगा पंडित कोई जाति है? कहाँ मिलते है ये लोग?
समाधान- भाषा एक रोचक विषय भी है। कब कौन शब्द गौरव प्राप्त हो जाय और और कौन गौरवयुक्त शब्द कब गिर जाए कुछ अनुमान नही। संस्कृत भाषा का यह शब्द मूलतः पुंज धातु से निकला है। पुंज का अर्थ है ढेर, राशि, समूह आदि। यही पुंज जब पुंग बन गया तब श्रेष्ठ लोगों के लिये पुंगव होकर निकला। रामचरितमानस के बालकांड में एक चौपाई ((14) पुंगव शब्द को देखिए-
व्यास आदि कवि पुंगव नाना, जिन्ह सादर सुयश बखाना।।
व्यास आदि अनेक श्रेष्ठ कवियों ने जिनका यश आदर सहित बखान किया है। यह पुंगव शब्द जो श्रेष्ठता को प्रदर्शित करता है इसका अपकर्ष यह हुआ कु यह शब्द बधिया किये हुए बैल और सांड के लिए उपयोग होने लगा। पुंगव शब्द अपनी रंगत खोते हुए पोंगा बन गया। पोंगा शब्द मूर्खता का द्योतक बन गया। उपहास स्वरूप उसके नाम के आगे पंडित लगा दिया। पंडित शब्द का गरिमामय अर्थ है–विद्वान। किसी शब्द का विपरीत संदर्भ में उपयोग उसके मूल अर्थ को भी नष्ट कर देता है। जैसे-गुरु एक सम्मानजनक शब्द है। लोग अक्सर कहते हैं गुरु जी पाँय लागूं या गुरुजी प्रणाम। लेकिन आजकल गुरु शब्द का इस्तेमाल इस प्रकार होने लगा है- वाह गुरु! अथवा तुम तो बड़े गुरु निकले। इन दोनों संदर्भों में गुरु शब्द का मान गिरा है। गुरु को चालू होने जैसा कहा जाने लगा है। दादा शब्द सम्मानित संबंध का शब्द है। कई अंचलों में बड़े भाई को दादा कहा जाता है। दूसरी ओर गुंडागर्दी, लूटपाट और बलपूर्वक अनैतिक काम करनेवाले को भी दादा कहा जाने लगा है। यही हाल पुंगव (श्रेष्ठ) शब्द के साथ भी हुआ पुंगव बदलते बदलते पोंगा (मूर्ख) हुआ। पोंगा शब्द को और उपहासीय बनाने के लिए पंडित भी जोड़ दिया। पंडित की विद्वत्ता भी मूर्खता के साथ गिर गई।