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पूरण सिंह कठैत का 6रुपए की मजदूरी से लेकर यूकेडी अध्यक्ष बनने का सफर


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✍🏿 अनसूया प्रसाद मलासी

उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) का 22वां द्विवार्षिक महाधिवेशन दल द्वारा प्रस्तावित उत्तराखंड राज्य की राजधानी चंद्रनगर (गैरसैंण) में हुआ। यहाँ हुए चुनाव में मतदान के बाद श्री पूरण सिंह कठैत पार्टी के नये केंद्रीय अध्यक्ष चुने गए। दल की स्थापना के 44 सालों में यह पहला अवसर था, जब सर्वानुमति के बजाय दल के मतदाताओं ने अपने पसंद का उम्मीदवार चुना। इस तरह दल के वरिष्ठ नेताओं काशी सिंह ऐरी, दिवाकर भट्ट, त्रिवेंद्र पंवार, पुष्पेश त्रिपाठी, डॉ. नारायण सिंह जंतवाल, बी.डी. रतूडी़ का उक्रांद पर एकाधिकार समाप्त हो गया और नए हाथों दल की बागडोर सौंप दी गई।

उक्रांद अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत : फर्श से अर्श तक
उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आम पहाडी़ परिवार की तरह आर्थिक तंगी से जूझते हुए पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए टेलीफोन विभाग में ₹6 की मजदूरी करके अपने जीवन की शुरूआत की और आज उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष हैं। बहुत रोचक और प्रेरणादायक है उनके जीवन का सफर…

पौड़ी जिले के कोट ब्लॉक में बमराडी़ गांव (जामणाखाल) निवासी 62 वर्षीय पूरण सिंह कठैत के पिता स्वर्गीय गोकल सिंह और मां स्व.गोदांबरी देवी हैं। आम पहाड़ी लोगों की तरह उनका बचपन भी आर्थिक तंगी से गुजरा और बड़े संकट में उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। माध्यमिक शिक्षा के बाद वे घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए टेलीफोन विभाग में छह रुपए प्रतिदिन की मजदूरी के हिसाब से लामबगड़ (चमोली) में काम करने लगे। अपनी लगन और मेहनत के बल पर उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और सन 1982 में विभाग में पक्के लाइनमैन की नौकरी प्राप्त करने में सफल रहे।
नौकरी के साथ-साथ अध्ययन भी जारी रखा और विभागीय परीक्षाएं पास करते हुए प्रोन्नति प्राप्त करते रहे। टेलीफोन विभाग में काम करते हुए वे उत्तराखंड राज्य आंदोलन में जुड़ गए और वर्ष 1994 के प्रचंड आंदोलन में 6 माह तक अवैतनिक रूप से राज्य प्राप्ति के आंदोलन में कार्य किया। श्री कठैत बीएसएनल कर्मचारी यूनियन के गढ़वाल मंडल के 6 वर्ष तक महासचिव रहे और सीनियर टीओ पद तक पहुँचे। 30 अप्रैल 2005 को उन्होंने विभाग से वीआरएस ले लिया। इसके एक सप्ताह बाद ही 6 मई 2005 को उन्होंने यूकेडी की सदस्यता ले ली।

उत्तराखंड क्रांति दल की गतिविधियों में वे सक्रिय रूप से कार्यरत रहे। वे दल के केंद्र संगठन मंत्री और तीन बार महामंत्री रहने के बाद गढ़वाल मंडल के प्रभारी भी रहे हैं।भरे-पूरे परिवार के साथ वे श्रीनगर में रहते हैं।

बुजुर्ग नेताओं का रिटायरमेंट :
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के स्वर्णिम दौर से गुजरी यूकेडी में अपना पूरा जीवन राज्य आंदोलन के लिए खफा देने वाले नेता आज जनता ने हाशिये पर डाल दिये हैं। लोग चाहे यूकेडी को वोट दें या ना दें, मगर यह जनमानस और दल के भीतर भी यह राय थी कि अब दल के बुजुर्ग लोगों को रिटायरमेंट ले लेना चाहिए और नौजवानों के हाथ में दल की बागडोर सौंप दी जाए।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन में फील्ड मार्शल के नाम से चर्चित दिवाकर भट्ट जी उत्तराखंड क्रांति के संस्थापक उपाध्यक्ष हैं। उक्रांद के गठन के तत्काल बाद काशी सिंह ऐरी जी यूकेडी में आए। पिथौरागढ़ महाविद्यालय में छात्र संघ उपाध्यक्ष चुने जाने के बाद श्री ऐरी 1979 में नैनीताल छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। वे 1985 में उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष चुने गए थे। करीब चार दशक तक उन्होंने यूकेडी पर एक-छत्र राज किया।


मिल-जुलकर देंगे दल को नई दिशा
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पार्टी के नवनियुक्त अध्यक्ष पूरण सिंह कठैत ने कहा कि उक्रांद को मजबूत करना मेरी प्राथमिकता रहेगी। इसके लिए छात्र व युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ा जाएगा। गांवों से लेकर शहरों तक पार्टी कैडर का विस्तार किया जाएगा। प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मजबूती से आवाज उठाएंगे। साथ ही जिस उद्देश्य के लिए राज्य बना था, उन्हें लागू कराने के लिए मिल-जुलकर संघर्ष के बूते सरकार पर दबाव बनाएंगे।
बातचीत में उन्होंने कहा कि पूरे राज्य का भ्रमण करने के बाद दल के वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श कर कार्यकारिणी का गठन किया जाएगा। इसमें सक्रिय व उत्साही लोगों को जिम्मेदारियां दी जाएंगी। निकटवर्ती स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव में सक्रिय भागीदारी की जाएगी ताकि अगली विधानसभा चुनाव तक लोगों का भरोसा जीतकर राजनीतिक रूप से परिपूर्ण होकर चुनाव मैदान में उतर सकें।

गैरसैंण यूं बना यूकेडी का टर्निग प्वाइंट:
गैरसैंण में रविवार 17 सितंबर को श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के ‘स्वामी मनमथन सभागार’ में यूकेडी का सम्मेलन श्री काशी सिंह ऐरी की अध्यक्षता में हुआ। इसमें प्रदेश के सभी जिलों से पार्टी के वरिष्ठ नेता, डेलीगेट्स और जिलाध्यक्ष मौजूद रहे। सम्मेलन की शुरूआत दल के संरक्षक और राज्य आंदोलनकारी इंद्रमणि बडोनी और विपिन त्रिपाठी को पुष्पांजलि अर्पित कर तथा दीप प्रज्वलन के साथ ही राज्य आंदोलन में उनके योगदान को याद किया गया।
सम्मेलन में दल की द्विवार्षिक रिपोर्ट पढी़ गई। वक्ताओं ने कहा कि पार्टी ग्राम व नगर स्तर पर सुदृढ़ संगठन और जनता से जुड़े मुद्दों के लिए निरंतर संघर्ष के बल पर मतदाताओं का विश्वास हासिल कर सकती है।

मतदान से चुना गया अध्यक्ष:
उत्तराखंड क्रांति दल के इतिहास में अध्यक्ष पद के लिए पहली बार मतदान प्रक्रिया अपनाई गई। अब तक सर्वसम्मति से ही अध्यक्ष पद का चुनाव होता था। इस बार अध्यक्ष पद के लिए में 4 नेता चुनाव मैदान में थे। सर्वश्री पूरन सिंह कठैत, पंकज व्यास, ए.पी. जुयाल और देवेश्वर भट्ट। चुनाव में सर्वाधिक 95 मत पाकर पूरन सिंह कठैत विजयी रहे। चुनाव की प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए प्रताप कुंवर व समीर मुंडेपी चुनाव अधिकारी तथा देवेंद्र चमोली मतदान अधिकारी बनाए गए थे।

उक्रांद में टूटी 44 साल की परंपरा, पहला चुनाव जीतकर केंद्रीय अध्यक्ष बनने का रिकार्ड बना गए पूरण सिंह कठैत

ऐसा नहीं कि पार्टी में सर्वानुमति बनाने के प्रयास नहीं हुए हों। चार दौर की बातचीत के बाद भी किसी एक पर सहमति नहीं बन पाई। अंतिम प्रयास के रूप में मतदान से ठीक पहले आधा घंटे तक अध्यक्ष पद के उम्मीदवार और दल के वरिष्ठ नेता एक कमरे में बंद होकर इस पर मंथन करते रहे। परिणाम नहीं निकलने पर मतदान की घोषणा की गई। पूरे दिन हो-हल्ला होता रहा। चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद दल के अध्यक्ष ने गैरसैंण बाजार में स्थित वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया।

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