पार्थसारथि थपलियाल/ इगास गढ़वाल का सबसे अधिक लोकप्रिय उत्सव है। यह उत्सव दीपावली के ठीक ग्यारह दिन बाद, कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड में अधिकतर त्यौहार, पर्व के रूप में मनाए जाते हैं। इगास , मकरैणी और बिखोत तीन त्यौहार ऐसे हैं जिनमे पर्व और उत्सव एक साथ मनाया जाता है। एकादशी शब्द का गढ़वाली भाषा मे रूपांतरण ही इगास है। इसके साथ बग्वाल शब्द भी जुड़ा हुआ है। इगास-बग्वाल। बग्वाल शब्द प्रसन्नता को लोकउत्सव के रूप में व्यक्त करता है। इस दिनको प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।
पहाड़ी क्षेत्रों में खरीफ की फसल पकने में मैदानी क्षेत्रों की तुलना में अधिक समय लगता है। खासकर धान (सट्टी) की फसल अश्वनि- कार्तिक (असूज-कार्तिक) तक खलिहानों से घर तक पहुंचती है। यह फसल उत्तराखंड में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। अच्छी फसल हो जाय तो किसान का मनभी प्रसन्न रहता है। प्रसन्न मन को उत्सव मनाने में अद्भुत आनंद मिलता है। इस उत्सव के मानने के पीछे कुछ घटनाएं जुड़ी हुई हैं।
1. गढ़वाल नरेश महपति शाह के शासनकाल में तिब्बत ने गढ़वाल पर आक्रमण करने की ठानी। नरेश को समाचार मिला तो उन्होंनें भड़ माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में एक फौज तिब्बत भेजी। दिवाली तक भी सेना वापस नही लौटी। किसी ने ये अफवाह उड़ा दी कि माधो सिंह भंडारी और फौज वीर गति को प्राप्त हो गए। उन्ही दिनों कार्तिक माह की अमावस भी निकल गई शोक के दिन मानते हुए उस साल दिवाली नही मनाई गई। दूसरी ओर सही बात यह थी कि माधो सिंह की फौज में तिब्बत की सेना को पराजित कर दिया था। भारी बर्फबारी के कारण रास्ते अवरुद्ध हो गए थे। 11वें दिन यानि कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी को माधो सिंह सकुशल घर लौट आये। इस खुशी में लोगों ने उस दिन इगास बग्वाल मनाई।
2.गढ़वाल तक भगवान राचंद्र की अयोध्या वापसी का समाचार दीपावली से 11वें दिन मिला इसलिए लोगों ने एकादशी के दिन अपने घरों को रोशन किये और विविध पकवान बनाये और आपसे में बांटे।
3.चौमासे (वर्षा ऋतु) में भगवान विष्णु देव शयनी एकादशी के दिन क्षीर सागर में सोने के लिए चले गए जो देवउठनी एकादशी को उठे।इस दिन को सभी लोग अनुकूल मानते हैं, इसलिए दीपावली के दिये जलाकर रोशनी की गई। घरों में पकवान (स्वाल पकोड़ा) आदि तैयार किये जाते हैं।कुछ लोग एकादशी का उपवास रखते हैं, गंगा स्नान करने भी जाते हैं। लोग इस दिन भेलो भी खेलते हैं। रात के समय आग के गट्ठर (कुलें की लकड़ी को कद्दू की बेल से बांधकर उसके दोनों सिरों को) को आग लगाकर डोरी के साथ घूम घूमकर भेलो भै भेलो चिल्लाते हैं। बहुत पुराने समय में जहां रिश्तेदारी नजदीक के गांव में होती उन गांव के लोगों के साथ जोर जोर से है परिहास भी किया जाता था।
4. जौनसार भावर में एक माह बाद भगवान राम की वापसी का संमाचार मिला। इसलिए वहां दिवाली का त्यौहार एक माह बाद मनाई गई।
इस दिन लोग तरह तरह के पकवान बनाते हैं एक दूसरे को बांट हैं। देव उठनी एकादशी के बाद शादी समाराहों के दिन खुल जाते हैं।