✍🏿पार्थसारथि थपलियाल
उत्तराखंड में एक जंगली फल होता है उसे तिमल कहते हैं। बात अभावग्रस्त समय की है। उस समय लोग कुर्ता घुटने घुटने तक पहते थे। 8-10 वर्ष की उम्र के बच्चे कई बार बिना अधोवस्त्र के जंगल में निकल जाते। ऐसा ही एक लड़का था। वह जंगल की ओर गया और उसने जंगल में देखा कि तिमल के पेड़ पर तिमल पके हुए हैं। वह पेड़ पर चढ़ा और तिमल के फल तोड़े। उसके पास थैला नही इसलिए उसने अपने कुर्ते के आगे वाले पल्ले को गोल बना कर उसमें तिमल रखे और वह घर की ओर चल पड़ा। रास्ते मे उसे एक भाभी मिली।
उस भाभी ने शरारत भरे अंदाज़ में कहा “देवर जी अपनी दुनिया दिखाकर क्या बताना चाहते हो”। पहले उसे समझ नही आया। जब समझा तब बिना सोचे कुर्ते का पल्ला नीचे गिरा दिया। हुआ यह कि सारे तिमल जो उस बच्चे ने बड़ी मेहनत और उत्साह से इकठ्ठे किये थे सब बिखर कर पहाड़ी में इधर में गिर कर घाटी की ओर चले गए। यह कहावत ठेठ गढ़वाली बोली में ही लिख रहा हूँ- “तिमलsक तिमल खत्यै अर नंग्यक नंगी दिखे”। अर्थात तिमल तो गिरे सो गिरे लेकिन नंगे भी दिखाई दिए।
इन दिनों संसद का पावस सत्र चल रहा है। विपक्षी गठबन्धन ने मिलकर सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव लोकसभा में रखा था। लोकसभा स्पीकर श्री ओम बिड़ला ने प्रस्ताव पर चर्चा की अनुमति दे दी। 8 से 10 अगस्त तक तीन दिनों चली। चर्चा के प्रथम वक्ता थे लोक सभा मे कांग्रेस के उप नेता श्री गौरव गोगोई, डी एमके के टी आर बालू, टीएमसी के सौगात रॉय, एनसीपी से सुप्रिया सुले, शिवसेना (उद्धव) गट के अरविंद साँवन्त, एस ए डी से सिमरन जीत कौर बादल, कॉंग्रेस नेता राहुल गांधी और मनीष तिवारी, सपा से डिम्पल यादव आदि सांसदों ने वाकयुद्ध में हावी होने की कोशिश की।
आधे मन और आधे तन से प्रबल प्रतिद्वंदी से जीतना संभव नही होता, जैसे चक्रव्यूह तोड़ने की लालसा सव्यसाची-पुत्र अर्जुन ने किया था। विपक्ष के वक्ता ऊंचा ऊंचा तो बहुत बोले, कोशिशें बहुत की लेकिन वे सभी बिना तैयारी के आये थे। वे गरजे बहुत लेकिन बरसे बहुत कम। लोकसभा में अपनी सरकार की ओर से अविश्वास प्रस्ताव में बचाव पक्ष से अंतिम वक्ता थे, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, जिन्होंने पानी पी पी कर अपने निशाने साधे।
इधर सत्ता पक्ष के साथ एक से एक धुरंदर वक्ता जैसे गृहमंत्री अमित शाह, सांसद निशिकांत दुबे, स्मृति ईरानी, सुधांशु त्रिवेदी, अनुराग ठाकुर, सुनीता दुग्गल, केंद्रीय मंतर किरेन रिजिजू, (भाजपा), केंद्रीय मंत्री नारायण राणे, बीजेडी के पिनाकी मिश्रा नवनीत राणा (निर्दलीय) शिवसेना शिंदे गट के सांसद अरविंद एकनाथ शिंदे,नेताओं ने अपनी वाक्पटुता से अपने प्रतिद्वंदी नेताओं को निशस्त्र और अवाक करते रहे। विश्वास प्रस्ताव का सांगोपांग उत्तर दिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। वे प्रतिद्वंदियों के सामने अपने तर्कों के साथ फूल फॉर्म में थे। उन्होंने मुख्य रूप से कॉंग्रेस पर तथ्यों के साथ वाक-प्रहार किये।
कल विपक्ष अपने उस निर्णय पर पछता रहा होगा कि उन्होंने बिना सोचे समझे सरकार को अपनी उपलब्धियों का प्रचार प्रसार का तीन दिवसीय राष्ट्रवापी मंच दे दिया।
अधिकतम विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले ही योजनाबद्ध तरीके से मुँह लटकाए बहिर्गमन कर गया।
न खुदा ही मिला न विशाल-ए- सनम
न इधर के रहे न उधर के हुए।
विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से गिर गया। समझ मे नही आया, क्या हकीम लुकमान ने सुझाया था कि बेइज़्ज़त होने का यही तरीका सबसे बढ़िया है?… सरकार की चतुराई देखें अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लेने से पहले सत्ता पक्ष ने किंचित भी विरोध नही किया। सरकार को मालूम था तीन दिन में सभी खबरिया चैनल संसद में उपजाए इस द्वंद को अवश्य प्रसारित करेंगे। अन्यथा खबरिया चैनलों को लठमार प्रवक्ताओं को ढूंढना पड़ता है। सरकार ने “मत चूको चौहान” सूत्र को ध्यान में रखा और 2024 के आम चुनावों का मंतव्य स्थापित कर दिया। विपक्ष ठगा का ठगा रह गया।
मिर्ज़ा ग़ालिब ने ऐसे ही मौके पर कहा था-
निकलना खुल्द से आदम का
सुनते आए थे लेकिन
बड़े बेआबरू होकर
तेरे कूचे से हम निकले। (व्यंग)