• Mon. Sep 30th, 2024

लंगवाल्यूंबगड़ में स्थापित हैं क्षेत्रपाल कुुंडलेश्वर महादेव, संतान प्राप्ति के लिए शिवार्चन के लिए पहुंचते हैं लोग, मान्यता:महामारी जैसे संकट की पहले मिल जाती थी चेतावनी


Spread the love

देवेंद्र उनियाल
श्रीनगर: पहाड़ की भूमि को केदारखंड के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर हजारों शिव मंदिर है और प्रत्येक मंदिर का अपना अलग महात्म्य है। ऐसे ही विकास खंड खिर्सू की चलणस्यूं पट्टी में लंगवाल्यूंबगड़ के समीप पहाड़ी पर स्थित कुंडलेश्वर महादेव स्थित है। इस मंदिर का वर्णन केदारखंड में भी मिलता है।
मान्यता है कि जब भी क्षेत्र के गांवों में कोई महामारी जैसे संकट आता था, तो कुंडलेश्वर महादेव किसी न किसी रुप में समय रहते चेतावनी दे देते थे। संतान कामना के लिए श्रद्धालु यहां शिवलिंग का जलाभिषेक करने भी पहुंचते हैं।

ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब ११ किलोमीटर दूर रुद्रप्रयाग की ओर डुंगरीपंथ-खेड़ाखाल मोटर मार्ग जाता है। इस मार्ग पर लगभग ५ किलोमीटर दूर लंगवाल्यूबगड़ बाजार है। यहां से करीब पौने एक किलोमीटर की पैदल चढ़ाई चढ़ कुंडलेश्वर महादेव मंदिर पहुंचते हैं। यह मंदिर प्राचीन काल से कंडोली, मुसोली, गजेली, गोस्तू और कफोली सहित ५० गांवों की आस्था का केंद्र रहा है।

केदारखंड मेें वर्णन है कि डुंगरेश्वर महादेव (डुंगरीपंथ) से पूर्व की ओर हर्षावती नदी के बाएं तट पर कुंडलेश्वर महादेव स्थित है। हर्षावती नदी (भट्टीसेरा गाड़) घनकूला देवी के चरणों से निकलते हुए डुंगरेश्वर महादेव में अलकनंदा नदी में मिल जाती है। बताया जाता है कि इस मंदिर मेें आदि गुरू शंकराचार्य ने भी पूजा-अर्चना की थी। किवदंती के अनुसार, एक बार अगल-बगल के गांव के लोगों ने शिवलिंग को समतल भूमि में स्थापित करने की योजना बनाई। लेकिन जैसे ही इस स्थान की खुदाई की गई शिवलिंग जमीन में नीचे धंसता चला गया।

भगवान शिव की इच्छा जान मानकर बाद में इसी पहाड़ी पर मंदिर की स्थापना की गई। इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहां लक्ष्मी नारायण का मंदिर भी है। मंदिर के अंदर लक्ष्मी नारायण की काले पत्थर पर तराशी गई मूर्तिया हैं। स्थानीय निवासी बताते हैं कि यह मूर्तियां छठी-सातवीं शताब्दी की हैं। इसके पुरातत्विक अध्ययन के लिए सर्वेक्षण जरुरी है।

क्षेत्रीय जनता श्रावण मास में शिव का जलाभिषेक करने मंदिर में पहुंचती है। विशेषकर संतान कामना के लिए लोग यहां शिवार्चन कराने आते हैं। पहले यहां एक प्राकृतिक जलकुंड (नौउ) था। श्रद्धालु इसी जलकुंड से जल भरकर शिवलिंग में चढ़़ाते थे। लेेकिन पूर्व में आई आपदा में यह कुंड मलबे मेंं दब गया। यह भी मान्यता है कि जब भी अगल-बगल के गांव मे कोई महामारी जैसे संकट आते थे तो मंदिर से पहले ही किसी न किसी रूप में चेतावनी दे जाती थी। इसलिए आज भी लोग इस मंदिर को अपना क्षेत्रपाल मानते है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
नॉर्दर्न रिपोर्टर के लिए आवश्यकता है पूरे भारत के सभी जिलो से अनुभवी ब्यूरो चीफ, पत्रकार, कैमरामैन, विज्ञापन प्रतिनिधि की। आप संपर्क करे मो० न०:-7017605343,9837885385