रामनगर। ग्रामीण क्षेत्रों में बाघ का आतंक खत्म नहीं हो रहा है। बीती रात बाघ ने कानिया किशनपुर गांव में हमला कर हीरालाल की गाय को मार डाला। ग्रामीणों का आरोप है कि घटना के बाद वन विभाग के अधिकारी विभागीय सीमा को लेकर एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। बाघ के आतंक के चलते ग्रामीण रात को खुद पहरेदारी करने को मजबूर हैं।
किसान संघर्ष समिति के संयोजक ललित उप्रेती ने तराई पश्चिमी डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य से इस मुद्दे पर फोन पर की। उप्रेती ने बताया कि डीएफओ ने घटनास्थल कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में पड़ने की बात कही। लेकिन जब कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से बात करते हैं तो कॉर्बेट वाले कहते हैं कि यह क्षेत्र तराई पश्चिमी का पड़ता है। विभागों के इस सीमा विवाद में गांव के लोग पिसते जा रहे हैं। और जंगली जानवर उनके पशुओं को अपना निशाना बना रहे हैं। इस घटना को लेकर गांव वाले बहुत ही नाराज और गुस्से में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जंगली जानवर किसी के खेत में मर जाता है तो दोनों विभागों के अफसर दल-बल के साथ पहुंच जाते हैं। लेकिन आज जब बाघ का आतंक गांव के अंदर फैला है तो कोई भी विभाग इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।गांव वाले अब अपनी सुरक्षा अपने हाथों पर लेकर गांव में हांका लगा कर बाघ को भागकर अपनी और अपने जानवरों की सुरक्षा कर रहे हैं। ग्रामीणों ने तय किया कि 4 दिसम्बर सोमवार को कॉर्बेट प्रशासन के सामने एक बड़ा धरना लगाकर अपनी सुरक्षा की गुहार की जाएगी।