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‘बदरीनाथ’ और ‘केदारनाथ’ को लेकर गोदियाल का दोहरा मापदण्ड


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*मुम्बई में कांग्रेस ने बदरीनाथ मंदिर बनाया तो गोदियाल ने नहीं किया विरोध*

*हैरानी की बात है कि गणेश गोदियाल उस समय बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष थे*

*कांग्रेस ने मुम्बई में क्यों बनवाया 11 करोड़ का बदरीनाथ मंदिर, अब तक चुप्पी साधे हैं गोदियाल*

*हार से नाराज कांग्रेस हाईकमान ने मात्र 9 माह में ही कर दी थी प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टी*

*धामी सरकार ने कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर हमेशा के लिए चार धाम के नाम पर मंदिर निर्माण पर लगाया प्रतिबंध*


देहरादून। जब आप एक उंगली किसी की तरफ उठाते हैं तो आपके हाथ की बाकी उंगलियां आपकी भी तरफ होती हैं। दिल्ली में केदारनाथ धाम मंदिर निर्माण के मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर लगातार निशाना साध रहे कांग्रेस के नेता गणेश गोदियाल यह भूल गए हैं कि 9 साल पहले उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री ने मुम्बई में बदरीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। वह मुख्यमंत्री और कोई नहीं बल्कि हरीश रावत थे। हरीश रावत ने ही मुम्बई में बदरीनाथ मंदिर का सिलान्यास किया था। हैरानी की बात है कि गणेश गोदियाल उस समय बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष थे, लेकिन तब उन्होंने मंदिर निर्माण का विरोध करने के बजाए उसमें सहयोग किया था।

वर्ष 2015 में मुंबई के वसई नामक स्थान में 11 करोड़ की लागत से भब्य बदरीनाथ मंदिर बनाया गया था। जिसके शिलान्यास के अवसर पर तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरीश रावत कार्यक्रम में शामिल हुए थे। तब कांग्रेसियों द्वारा यह कहा गया कि एक ही नाम से मंदिर बनने से कोई फर्क नही पड़ेगा। तत्कालीन बीकेटीसी अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने मुंबई में बने बदरीनाथ मंदिर बनने का विरोध नहीं किया। अब वह दिल्ली में केदारनाथ धाम मंदिर बनाए जाने को लेकर धामी सरकार के खिलाफ कुप्रचार कर रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि दिल्ली में बन रहे मंदिर से राज्य सरकार का कोई लेना देना नहीं है और ना ही राज्य सरकार अथवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसके निर्माण आदि के लिए किसी प्रकार का कोई सहयोग दिया है । मुख्यमंत्री धामी साफतौर पर कह चुके हैं कि दिल्ली में प्रस्तावित मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल होने के लिए वह कुछ विधायकों, जन प्रतिनिधियों तथा साधु-संतों के अनुरोध पर गये थे। यह रूटीन प्रक्रिया का हिस्सा था। मुख्यमंत्री ने धार्मिक कार्यक्रम के नाते कार्यक्रम में शामिल होने की सहमति दी थी। इसके पीछे यह मंतव्य कहीं भी नहीं था कि प्रस्तावित मंदिर को बाबा केदार के धाम के रूप में विकसित किया जाएगा।

यहाँ बता दे कि केदारनाथ विधानसभा सीट स्थानीय विधायक शैलारानी रावत के निधन से वर्तमान में रिक्त चल रही है। इस सीट पर अलगे कुछ महीनों के उपचुनाव होने हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए दिल्ली में हुए केदारनाथ मंदिर के शिलान्यास को मुद्दा बनाना चहता है। इसी क्रम में गणेश गोदियाल रोज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर हमलावर हैं। जबकि हकीकात यह है कि इस मसले पर विवाद शुरू होते ही धामी ने सख्ती के साथ केदानाथ धाम ट्रस्ट दिल्ली को मंदिर का निर्माण रुकवाने को कहा। इसके लिए एक सख्त कानून भी बना दिया गया है। मुख्यमँत्री धामी की तल्खी का ही असर है कि इस ट्रस्ट ने अब मंदिर निर्माण के निर्णय को वापस ले लिया है बल्कि ट्रस्ट का अस्तित्व भी वैधानिक रूप से समाप्त किए जाने की घोषणा ट्रस्टियों की ओर से की जा चुकी है।

सवाल यह उठता है कि किसी भी मामले में दोहरे मापदण्ड कैसे हो सकते हैं ? केदारनाथ के नाम से दिल्ली में मंदिर बन जाए तो गलत और मुम्बई में बदरीनाथ का भव्य मंदिर बन जाए तो सही। बेशक गोदियाल दो बार विधानसभा का चुनाव जीते हों लेकिन अति उत्साह में उनके द्वारा समय समय पर दिए गए गैर जिम्मेदाराना बयान चुनावों में कांग्रेस को भारी पड़े हैं। 22 जुलाई 2021 से 10 अप्रैल 2022 तक गणेश गोदियाल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे तक वर्ष 2022 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरपरस्ती में भाजपा ने लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने का इतिहास बनाया था। इस हार से नाराज कांग्रेस हाईकमान ने तत्काल प्रदेश अध्यक्ष के पद से गोदियाल की छुट्टी कर दी। बतौर प्रदेश अध्यक्ष गोदियाल का कार्यकाल महज 9 माह का रहा। जो प्रदेश में कांग्रेस के किसी अध्यक्ष का सबसे छोट कार्यकाल है। इतना ही नहीं 2002 से 2022 तक गोदियाल ने विधानसभा के 5 चुनाव लड़े जिनमें से 3 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। एक बार रमेश पाखरियाल निशंक और दो बार धन सिंह रावत उन्हें विधानसभा चुनाव में हरा चुके हैं। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में पौड़ी संसदीय सीट से भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी ने भी उन्हें भारी मतों से शिकस्त दी थी।

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