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ऋतु से ये कैसी सियासत? पिता की हार का बदला या खंडूरी से हिसाब चुकता!!


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☞अरुणा आर थपलियाल

यमकेश्वर की सिटिंग विधायक ऋतु खंडूरी का टिकट भाजपा ने न जाने किन कारणों से काटा। हालांकि कहा यह जा रहा है कि उनकी रिपोर्ट जीत के पक्ष में नहीं थी। सवाल यह है कि भाजपा के कितने सिटिंग एमएलए ऐसे हैं जो सीना ठोक कर अपनी जीत का दावा कर सकते हैं। भाजपा ने बहुत से विवादित और अपने क्षेत्रों में लोगों द्वारा भगाए गए विधायकों को टिकट दे दिया तो सिर्फ ऋतु खंडूरी को लेकर ही ऐतराज क्यों हुआ। ऋतु को उम्मीदवार बनाने में क्या हर्ज था।

माना कि ऋतु अपने क्षेत्र में ज्यादा करिश्मा नहीं दिखा पाई होंगी। लेकिन, भाजपा यह गिना सकती है कि उसके पास कितने विकास पुरुष चमत्कारी विधायक हैं।

दरअसल यह लड़ाई ऋतु की नहीं है, बल्कि गढ़वाल क्षेत्र से एक बड़े नाम को इतिहास से मिटा देने की साजिश है। भाजपा के अंदर कुछ लोग नहीं चाहते कि खंडूरी के नाम पर आगे राजनीति में कोई कदम रखे और उनके लिए सियासी चुनौती बने।

बताया यह भी जा रहा है कि बेटी का टिकट कटने के बाद खंडूरी ने भाजपा के नेतृत्व से बात कर अपनी नाराजगी भी जाहिर की है। उन्होंने कुछ नेताओं को डांटा भी कि तुम लोगों के कारण उनका बेटा मनीष को कांग्रेस में जाना पड़ा, अब क्या चाहते हो कि ऋतु भी कुछ ऐसा वैसा कदम उठाए। सूत्र बताते हैं कि खंडूरी बेहद नाराज थे।

खैर, जानकारी में आया है अब हाईकमान ने ऋतु खंडूरी को कोटद्वार से टिकट देने पर मंथन किया है या यूं कहें विचार किया है। कहा जा रहा है कि यम्केश्वर से ऋतु का टिकट नहीं काटा गया बल्कि उन्हें कोटद्वार शिफ्ट किया गया है। कोटद्वार के सिटिंग विधायक हरक सिंह रावत थे, जो कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।

कोटद्वार भाजपा के लिए एक कमजोर सीट थी। ऋतु यहां से मजबूती के साथ कांग्रेस के उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह नेगी का मुकाबला करेंगी तो अपने पिता भुवन चंद्र “खंडूरी की खंडूरी” हैं जरूरी ने नारे के बावजूद हुई शर्मनाक हार का बदला लें लेंगी।

विधानसभा चुनाव 2012 में भाजपा के लिए तत्कालीन मुखनमंत्री  खंडूरी बेहद अहम थे। उन्हीं की फ्रंट में रखकर चुनाव लडा गया। “खंडूरी हैं जरूरी” का नारा लेकर भाजपा चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन कोटद्वार की जनता ने तब खंडूरी को नकार दिया और कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी चुनाव जीत गए। इसलिए अब कहा जा रहा है कि ऋतु खंडूरी कोटद्वार से चुनाव लड़ेंगी तो अपने पिता के हार का बदला लेकर अपने पिता को संतुष्टि देंगी, क्योंकि खंडूरी उम्र के उस पड़ाव में है जहां आज क्या और कल क्या। ऋतु की जीत के दावे के पीछे तर्क है कि कोटद्वार की जनता ईमानदार छवि वाले खंडूरी को हराकर पछतावे में है और  प्रायश्चित करना चाहती है। बेटी को जिताकर कोटद्वार वासी अपना “पाप” धुलेंगे।

हालांकि, हकीकत कुछ और भी हो सकती है। पहले से ही हारी मानी गई सीट पर ऋतु को उतारना  खंडूरी विरोधियों की चाल मानी जा रही है। इसके मुताबिक यदि ऋतु जीत गई तो वाहवाही उनके खाते में आएगी और हार गई (इसकी आशंका ज्यादा है) तो खंडूरी परिवार अथवा खंडरी के नाम की माला जपकर भविष्य में कोई भी नेता ” गुट विशेष” को चुनौती देने लायक नहीं रहेगा। बहरहाल इस मामले में सियासत जो भी हो लेकिन ऋतु खंडूरी को इसका ” टूल” बनाना कहां तक उचित है।

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