✍🏿पार्थसारथि थपलियाल
उत्तराखंड भारत का पहला राज्य है जहाँ संस्कृत भाषा को दूसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। संस्कृत और संस्कृति को संरक्षित और पल्लवित करने के प्रयास यहां मानव सभ्यता के आदिकाल से होते रहे हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार, देवप्रयाग आदि अनेक स्थानों पर प्राचीनकाल से संस्कृत पढ़ने और पढ़ाने के केंद्र, गुरुकुल रहे हैं। ऐसा भी समय था जब उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उत्तराखंड के छात्र बनारस जाया करते थे। बाद में गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार व अनेक आश्रमों में संस्कृत शिक्षा उच्चस्तर पर दी जाने लगी। संस्कृत के प्रति यहां के लोगों का अनुराग सर्वविदित है। पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी आदि अनेक स्थानों पर जान सहयोग से आज भी संस्कृत भाषा-साहित्य, ज्योतिष आदि विषयों को पढ़ाने की व्यवस्था की संस्कृति अभी शेष है।
ज्वालपा धाम, जो पौड़ी जिले में नाबालका नदी जिसे पश्चमी नयार नदी भी कहते हैं, के तट पर स्थित है। माँ ज्वालपा के भक्तों ने 1969 में श्रीज्वालपा देवी मंदिर मंदिर समिति गठित की और सबसे पहले यात्री सुविधाओं को बढ़ाने के प्रयास किये। आज जन सहयोग से बनी अनेक धर्मशालाएं और अतिथि विश्रामगृह ज्वालपा धाम में भक्तों के आश्रयस्थल हैं। पचास वर्ष पूर्व समिति बनाने वाले महानुभावों- स्वर्गीय उर्बी दत्त थपलियाल, सुरेशानंद थपलियाल, नारायण दत्त थपलियाल, सत्यप्रकाश थपलियाल, धर्मानंद थपलियाल, दिगम्बर प्रसाद थपलियाल ने विचार किया कि आधुनिक शिक्षा रोजगार तो दे देगी लेकिन यह हमारी संस्कृति को नही बचा पाएगी। 1973 में उन्होंने गुरुकुल पद्यति के अनुरूप श्री ज्वालपा धाम संस्कृत विद्यालय की स्थापना की।
आर्थिक दृष्टि से निर्बल छात्रों के लिए निशुल्क संस्कृत शिक्षण व्यवस्था स्थापित की।आवास, भोजन, शिक्षण सामग्री, परिधान सभी कुछ समिति समाज रत्न अनेक भामाशाहों की सहायता से करती है। ज्योतिष, कर्मकांड, योग और संगीत में विद्यार्थी खूब रुचि लेते हैं। आधुनिक शिक्षा भी इन छात्रों को दी जाती है। अंग्रेज़ी, गणित, कम्प्यूटर सीखने वाले योग्य अध्यापक यहां छात्रों को योग्य बनाने में कार्यरत हैं। कक्षा 6 से 12वीं तक उत्तरमध्यमा तक विद्यालयी शिक्षा, उत्तराखंड संस्कृत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम के अनुरूप शिक्षा दी जाती है।
श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति ने 1996 में शास्त्री स्तर /स्नातक/ तक शिक्षा व्यवस्था प्रदान करने के लिए श्री ज्वालपा देवी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय स्थापित किया। अब तक लगभग 600 से 700 विद्यार्थी इस संस्थान से शिक्षा प्राप्त कर देश विदेश में उत्तराखंड का नाम रोशन कर रहे हैं।
लंबे समय से समिति इस उहापोह में रही कि संसाधनों के अभाव में आचार्य स्तर तक शिक्षा देने के लिए क्या किया जाय। इस वर्ष समिति नें निर्णय ले लिया कि अगले शिक्षा सत्र से ज्वालपा धाम में उच्चतर शिक्षा के लिए संस्कृत में आचार्य स्तर तक शिक्षा देने की व्यवस्था कर दी जाएगी। यदि कोई दानदाता आर्थिक संबल देना चाहे तो उनका अभिनंदन है। समिति को दिया जाने वाला चंदा आयकर नियमों में निर्धारित छूट नियमों के अंतर्गत आता है। समिति इसी वर्ष जुलाई से संस्कृत में आचार्य कक्षाएं शुरू कर सकती है। इसके लिए समिति के पास क्लास रूम की कमी है। श्री ज्वालपा देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष कर्नल शांति प्रसाद थपलियाल /से.नि./ बताते हैं वे आचार्य स्तर तक मान्यता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। आशा है माँ ज्वालपा हमारे इस लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी सहायता करेगी।