• Wed. May 15th, 2024

न्याय के गोलू देवता से बिना फीस न्याय पाने की अपील


✍🏿पार्थसारथि थपलियाल

यह बड़ा पेचीदा मामला है। तलवार दुधारी है। समाज मे रहते हुए में न्याय पर बात की जाय तो मुश्किल यह है कि हमारी देव तुल्य पवित्र न्याय व्यवस्था शनि का रूप धारण कर सकती है। और न्याय व्यवस्था पर कोई बात न कि जाय तो अन्याय को ही न्याय कहने की आदत पड़ जाएगी। “इसीलिए भारत सरकार के राजपत्र और अन्य व्यवस्थाओं के शीर्ष लेखों और पहचान पटों पर मुण्डकोपनिषद का एक घोष शब्द त्रिआयामी अशोक चिन्ह के नीचे लिखा होता है- “सत्यमेव जयते” अर्थात सत्य की ही विजय होती है। नाटकों में, फिल्मों में एक डायलॉग बहुत जाना पहचाना सा है- “सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नही”। बहुत बाद में समझ में आया कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपनी अपनी भड़ास निकालकर चुप बैठ जाने का एक संवैधानिक उपाय है। अगर कब्ज पुराना हुआ तो मानहानि का केस कभी भी बन सकता है। इसलिए इस मामले को पवित्र ही मानना चाहिए वरना हीलहुज़्ज़त की तो आशा राम बापू और जितेन्द्रनाथ त्यागी (वसीम रिज़वी) और अकबरुद्दीन ओबेसी प्रकरणों को लोग नजीर के रूप में सुनाएंगे।

हमारी न्याय व्यवस्था की पवित्रता को बचाये रखने के लिए कृत संकल्प कुछ सेकुलरवादी सामाजिक कार्यकर्ताओं को लगता है मी लार्ड! जीवन सुरक्षा का मामला है रात को ढाई बजे कोर्ट लगाइए। वास्तव में कोर्ट लगती है। इस कारण से हमारी न्यायपालिका की निष्पक्ष और न्यायप्रियता की छवि संसार में प्रसिद्द है। मैं सदैव न्यायपालिका के सम्मान के प्रति जागरूक रहा। अपने रेडियो नाटकों में उन संवादों से भी डरता रहा तो लोकशिक्षण के लिए आवश्यक थे। मेरा यही गुण मेरे पोते में भी आ गया। एक बार टी वी सीरियल में पुलिस द्वारा बदमाशों की धुनाई देखी थी तब से वह सड़क में ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों से ऐसा डरता है जैसे असली अपराधी यही हो। इसलिए न्याय की गुहार के लिए हमारे घर में पंच प्रधान के पास जाने की बजाय घर मे नक्षत्र पूजा, नवग्रह पूजा कर लेते, न्याय के देवता शनि के ऊपर तेल चढ़ा आते थे। पिताजी कहा करते थे घर से निकलते वक्त काले कुत्ते को रोटी खिलाया करो। ग्रह शांत रहेंगे। वे कहते विंशोत्तरी दशा में शनि 19 साल तक एक राशि मे रहता है। न्याय का देवता शनि, किसी को चढते समय तो किसी को उतरते समय मालामाल कर जाता है। विंशोत्तरी दशा न्याय की तरह देर में फैसला सुनाती है, लेकिन शनि की साढ़े साती तो 30 बरस में भुक्त भोग्य के आधार पर कम से कम जीवन में दो बार तो आती ही है। ग्रामीण जीवन की लोकोक्तियों में यह बात चौपाल में बैठा चौधरी लठ्ठ पकड़ते कह देता- “सुखराम! बात तो तेरी लाख टके की है, लेकिन तू फैसले को न्याय बोल देता है। अरे भाया! न्याय किया हो तो दिखणा भी चाहिए”।

यह बात लिखते हुए कहने को तो डर नही लेकिन हाथ मे न्याय का तराजू लिए आंखों पर पट्टी बांधे हुए उस न्याय की देवी से डर लगता है जो बंद आंखों के पीछे से स्वतः संज्ञान की प्रेरणा आंखों वाले न्यायमूर्ती को दे जाती है।
मेरे बचपन मे मैंने देखा था कि चावल अभिमंत्रित कर अपराधी का पता लगा लेते थे। उस ज़माने में पंच भी मुंशी प्रेमचंद की कहानी “पंच परमेश्वर” की तरह होते थे। मटका चलाना, कटोरी घुमाना भी न्याय तक पहुंचने के मार्ग थे।
मैं कल से यह जानने का इच्छुक था कि न्यायालय दिल्ली के जहांगीरपुरी के अतिक्रमण पर जब रोक लगाया तो उसने गरीब लोगों की गरीबी को प्राथमिकता दी होगी या कानून की अनुपालन को? सरकारें अक्सर ऐसे मामलों के लिए समिति गठित कर देती हैं। जबतक समिति अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है तबतक लोग प्रकरण भी भूल जाते हैं। पिछली यू पी ए सरकार में उस व्यवस्था के लिए “गोम” (ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स) कहते थे।

खैर, न्यायालय की अवमानना न हो इस लिए कुछ मामलों में अपनी न्याय की इच्छा के लिए नीम करौली बाबा या पंडोखर धाम की दैविक शक्तियों को परेशान करने की बजाय सामाजिक न्याय के लोकदेवता (अल्मोड़ा) “गोलू देवता” को एक चिट्ठी लिख रहा हूँ कि प्रभो 1990 में कश्मीरी पंडतों का पलायन के गुनाहगारों के लिए कोई स्कीम है, ताकि पंडितों को ने मिल सके। आपके पास जो भी जानकारी हो उसे सार्वजनिक कर देना। प्रभो!अगर बंगाल भी आपके न्यायक्षेत्र में आता हो तो अपनी पावर जरूर बताना कि निर्दोष लोगों को क्यों मारा गया? क्या वह प्रकरण “स्वतः संज्ञान” में आता है या नही? तब्लीगी जमात का मुखिया पिछले प्रकरण के बाद किस भूमंडल पर जमात के कार्य को विस्तार दे रहा है? केरल में जिस तरह एक सामाजिक कार्यकर्ता की नृशंस हत्या की गई है,(जिसमें उसकी गर्दन, बाजुएं और टांगों को बेरहमी से काटा गया है), वह स्वतः संज्ञान का मामला है या नही।
आप चाहें तो सपने में भी बता सकते हैं।

प्रभो! इस मामले को मैं विधिक न्यायालय में ले जाता लेकिन सेवाकाल में कुछ लोग 25 साल पहले न्याय पाने के लिए जंजीर हिलाए थे तब से अब तक हिलती हुई जंजीर को ही देखते रह गए। जो पैंट पहनकर कोर्ट गए थे, वे सभी नेकर पहने बाकी लोगों की दुआएं (बद) लेकर दुबके हुए हैं। कहने का मतलब बड़ी फीस का बड़ा वकील करिश्मा कर सकता था, ऐसे वकील को केस लड़ने का पैसा देने की हिम्मत नही। वैसे भी रिटायर आदमी की घर वाले ही नही सुनते बाकी की तो कहना ही क्या? मुरझाए फूल किसी मंदिर में कब चढ़ाए जाते हैं? इसलिए गोलू देवता अब प्रमोशन नही चाहिए, मोशन ठीक रहे। महाराज आशा है आपके यहाँ वकील या पेशकार तो नही होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
नॉर्दर्न रिपोर्टर के लिए आवश्यकता है पूरे भारत के सभी जिलो से अनुभवी ब्यूरो चीफ, पत्रकार, कैमरामैन, विज्ञापन प्रतिनिधि की। आप संपर्क करे मो० न०:-7017605343,9837885385