-यूसीसी लागू होने के बाद पैतृक संपत्ति में पुत्रियों का होगा समान अधिकार
देहरादून। शुक्रवार को समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट सरकार को मिल चुका है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसमें सुझाये गये सभी बिंदुओं को सरकार स्वीकार करे। यह बात तय है कि यूसीसी के कई प्रावधान धार्मिक आधार पर भेदभाव को खत्म करेंगे और आधी आबादी को अधिकांश मामलों में पुरुषों के बराबरी हासिल हो सकेगी।
शुक्रवार को एक्सपर्ट कमेटी ने मुख्यमंत्री धामी को यूसीसी का जो ड्राफ्ट सौंपा है, उसका मसौदा अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है। पब्लिक डोमेन पर आने से पहले इसे कैबिनेट और विधानसभा की मंजूरी लेनी होगी। हालांकि एक्सपर्ट कमेटी ने समय-समय पर जो व्याख्यान दिए हैं उनसे कानून के कुछ बिंदुओं की ओर इशारा जरूर होता है।
मसलन लिव इन रिलेशनशिप को लेकर कानून सख्त हो सकता है। इसमें दोनों पक्षों को डिक्लेरेशन देना होगा और इसके लिए माता-पिता की सहमति भी आवश्यक की जा सकती है। इसका एक कानूनी फॉर्मेट तैयार किया जाएगा। यानी यूसीसी लागू होने से नाम, पहचान या जाति-धर्म बदलकर प्यार करने और शारीरिक संबंध बनाने पर प्रभावी तरीके से रोक लग सकेगी। इसके अतिरिक्त हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का भी प्रावधान किया जा सकता है।
लड़कियों की विवाह की आयु को लेकर स्थिति अभी साफ नहीं हुई है। कुछ सदस्य इसे मौजूदा 18 वर्ष पर ही सीमित रखने पर सहमति दी है तो किसी ने इसे 21 वर्ष करने को कहा है। अंतिम निर्णय सरकार को लेना है। विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। बगैर रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। ग्राम स्तर पर भी शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी। इसी तरह पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे।
फिलहाल एक अल्पसंख्यक कानून के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग-अलग ग्राउंड हैं। एकल विवाह का प्रावधान किया गया है। बहु विवाह मान्य नहीं होगा। पैतृक संपत्ति में बेटियों को बेटों के समान हिस्सा मिलेगा। अभी पर्सनल लॉ के मुताबिक बेटे का हिस्सा बेटी से अधिक है।
इसी तरह नौकरी शुदा बेटे की मौत होने के बाद पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता पिता का भी हिस्सा होगा। गोद लेने का अधिकार सभी को मिलेगा। इस प्रक्रिया को और आसान की जाएगी। जनसंख्या नियंत्रण पर अभी स्थिति साफ नहीं हुई है।
एसटी पर नहीं लागू होंगे प्रावधान?
यूसीसी पर सही स्थिति एक सप्ताह बाद साफ होगी। लेकिन सूत्रों की मानें तो सरकार ने प्रदेश के जनजातीय समूह को इस कानून के दायरे से बाहर रखा है।
इसी तरह ट्रांसजेंडर को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है। हालांकि यदि किसी भी कानून के प्रावधान सभी पर लागू नहीं होते तो इसे शायद ही समान नागरिक कानून माना जाए।