“पैसा ख़ुदा तो नहीं पर ख़ुदा से कम भी नहीं” यह छतीसगढ़ के कद्दावर भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव को कहते सुना गया था, जब नवंबर 2003 में एक स्टिंग ऑपरेशन में वे कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए कैमरे में दिखाये गए थे। #uttrakhand के कैबिनेट मंत्री #harak_singh_rawat भी इससे सहमत से लगते हैं। हाल में एक सवाल के जवाब में उन्होंने बेबाकी से स्वीकारा कि राजनीति में भी पैसे चाहिए होते हैं। ये पैसे कहां से आएंगे?
उत्तर प्रदेश के दो नेताओं निषाद और राजभर के हालिया स्टिंग के बाद वर्ष 2016 में उत्तराखंड में हुए एक स्टिंग को लेकर फिर से चर्चाएं शुरू हो गयी हैं। यह अलग बात है कि तब इस स्टिंग के मुख्य किरदार रहे प्रदेश के मौजूदा कैबिनेट मंत्री हरक सिंह आज इसे तवज्जो देने के पक्ष में नही हैं।
पत्रकारों द्वारा स्टिंग को लेकर पूछ गये सवालों को टालते हुए ऊर्जा मंत्री हरक सिंह ने कहा कि पारदर्शिता बेहद जरूरी है। लेकिन उससे काम नहीं चलता। हरक ने कहा कि जिस तरह प्यार और जंग में सब कुछ जायज होता है उसी तरह राजनीति में भी साम दाम दंड और भेद को अपनाना पड़ता है। उन्होंने रामायण और महाभारत का हवाला देते हुए कहा कि इन धर्मग्रंथों में भी राजनीति को लेकर कुछ ऐसा ही उल्लेख है।
हरक सिंह ने मीडिया को भी लपेटते हुए कहा कि कुछ वर्ष पहले तक चुनाव के दौरान खबर छापने के लिए मीडिया विज्ञापन नहीं मांगती थी। लेकिन आज विज्ञापन दिये बगैर एक लाइन खबर नहीं छपती है। हरक ने कहा कि यदि कोई नेता ईमानदार हुआ तो वह विज्ञापन के लिए पैसे कहां से लाएगा? उन्होंने कहा कि यह एक दृष्टांत मात्र है। हर जगह पैसों की जरूरत होती है और नेता भी इसके अपवाद नहीं हैं।
दरअसल, वर्ष 2016 में हरक सिंह की रणनीति में प्रदेश के तत्कालीन सीएम हरीश रावत फंस गये थे और उनका स्टिंग हो गया था। ये घटना उस समय की है जब उन्हें अदालत के आदेश के तहत सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। हरक सिंह ने इस पूरे प्रकरण में हरीश रावत के खिलाफ मुख्य किरदार की भूमिका निभाई थी। आज हरक सिंह सियासी कारणों से इस घटना को याद नहीं करना चाहते हैं।
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