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बसंत पंचमी-बुद्धि, विद्या और वाणी की देवी सरस्वती जन्मोत्सव


✍️पार्थसारथि थपलियाल

माघ नाम ही पुण्य फल दायक है, फिर माघ माह में बसंत पंचमी तो भारतीय प्रज्ञा का पर्व है। माघ माह में शुक्लपक्ष पंचमी का दिन बुद्धि, विद्या और वाणी की देवी सरस्वती के जन्मदिन के रूप में मनाने की भारतीय परंपरा है। इस दिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग पवित्र नदियों /सरोवरों में स्नान करते हैं, पीला चंदन / टीका लगाते हैं पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले चावल (भात) खाते हैं। माता सरस्वती के चित्र पर पुष्प माला चढ़ाकर धूप दीप कर सरस्वती देवी की पूजा करते हैं-
सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने
विद्यारूपा विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते॥

या देवी सर्वभूतेषू, मां सरस्वती रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणी विनायकौ।।

सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम:।
वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्य एव च।।
सनातन संस्कृति में इस दिन बच्चों का विद्यारंभ संस्कार किया जाता था। सरस्वती पूजा के बाद सोने की कलम से बच्चों की जीभ पर ॐ लिखा जाता था। गुरुजी तख्ती पर लिख जाते थे- ॐ नमः सिद्धम।। बच्चे के हाथ मे कलम देकर ॐ बनाने का अभ्यास करवाया जाता था। पर्व के दिन दान देने का बहुत पुण्य मिलता है, इसलिए दान देने की परंपरा सनातन है।

उत्तराखंड में बसंत पंचमी :
बसंत पंचमी उत्तराखंड का एक प्रमुख त्योहार है। पुण्य स्नान की परंपरा तो है ही। उत्तराखंड में इस दिन भगवान शिव की परंपरा से आगे बढ़े कलावंत (कृपया दास को उर्दू के गुलाम के साथ न देखें, दास भक्त को कहते हैं) दास घरों में नौबत बजाते हैं और जौ की हरियाली बांटते हैं। जिन्हें शुभता के प्रतीक द्वारों के ऊपर कोनों में गोबर से चिपकाया जाता है। दास को कुछ न कुछ दिया जाता है। बसंत पंचमी से गांव की लड़कियां, नवविवाहिताएं रात को भोजन करने के बाद चौपाल पर इकठ्ठा होकर बसंत पंचमी के गीत गाती है और नृत्य करती हैं। ये मध्य रात्रि तक गाते हैं। इन गीतों को थडिया चौंफला कहते है। इनके साथ मार्ग दर्शन के लिये बूढी महिलाएं भी होती हैं। गांव के कुछ लोग इन्हें भेली देकर सम्मान करते हैं। शिखरों पर बसे गांवों से घाटियों में बसे गांवों से निकलती सुर लहरियां प्रकृति का वेद गाती हैं। इन घाटियों में जहां आम की बौरें वातावरण को सुगंधित कर देती हैं वही खेतों में सरसों के पीले फूलों और फ्यूंली के फूल प्रकृति में अपना अवदान देते हैं।

1. आई पंचमी माव की, बांटी हरियाली जौ उ की।।

2. सेरा की मींडोली नै डाली पंयां जामी
देवताओं का सत न नै डाली पंयां जामी।।

बुद्धि, विद्या और सरस्वती का आह्वान इससे अच्छा क्या हो सकता है।
सभी पर सरस्वती की कृपा बनी रहे, ऐसी कामना है।

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