✍️पार्थसारथि थपलियाल
पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया की गर्मी ने मावठ की ठंड में भी गर्मी बढ़ा दी है। उत्तर प्रदेश में 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर मतदाता अपना निर्णय दे रहे हैं। आप ये न सोचें कि बिकनी कहाँ है? बात ध्यान में ये आयी कि 75 वर्षों में हम न राजनीति में राष्ट्रीय विचार स्थिर कर पाए न संस्कृति में। भारत भाग्यविधाता एक बोतल की गर्मी में अपने पांच सालों को गिरवी रख देता हैं और कुछ लोग संस्कृति की आड़ में बिकनी को राजनीति का तकिया बना रहे हैं।
कर्नाटक में हिजाब को लेकर एक बवाल जोरों पर है कि स्कूल /कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर विबाद क्यों? किसी समुदाय या धर्म मे कोई पहनावा अगर आवश्यक है तो उसे धार्मिक स्वतंत्रता होनी चाहिए।भारत एक सहिष्णु देश है।
यह बात दिसम्बर 2021 के अंतिम सप्ताह में तब उठनी शुरू हुई जब उडप्पी जिले के पीयू कॉलेज की 8 छात्राओं ने कॉलेज द्वारा ड्रेस कोड का पालन करने के लिए निकले गए आदेश के बाद हिजाब में आना शुरू किया। इस कॉलेज में करीब 150 छात्राएं धर्म विशेष से हैं उनमें से 8 छात्राएं जो कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन कैम्पस फ्रंट के इशारों पर इस प्रक्रिया को धार्मिक रास्ते से राजनीति के मुहाने पर ला कर रखने का प्रयास कर रही हैं। यह उनका निजी मामला तब है जब कि वह धर्म विशेष की आवश्यक पहचान हो। जैसे सिखों में सिर पर केश, केश में कंघा हाथ मे लोहे का कड़ा, कच्छ और कृपाण।
संसार प्रगति कर रहा है। लगभग सभी धर्मों में धार्मिकता दिखावा और राजनीति का हथियार से अधिक कुछ रही नही। अगर हिजाब पहनना इतना ही आवश्यक है तो मॉडलिंग में और फिल्मों में काम करने वाली इसी वर्ग की अभिनेत्रियों के लिए भी आवश्यक होना चाहिए। कुरान के अनुसार मुस्लिम महिलाओं को अपनी शर्मगाह और सीने को कवर कर रखना चाहिए। कुरान का पालन अवश्य किया जाना चाहिए। सभ्य संस्कृति यही है न कि भोंडापन।
समझने की बात यह है कि आदेश के बाद ही हिजाब पहनना धार्मिक कृत्य क्यों बना। प्रश्न यह भी है कि जय श्री राम के नारे क्यों लगाए गए? राजनीतिक रोटी सेकने वाले इस समर में क्यों उतरे? क्या यह CAA आंदोलन का नया रूप तो नही जिसे कट्टरपंथी संगठन समर्थन दे रहे थे? अन्यथा इतने छोटे से मसले पर कर्नाटक उच्च न्यायालय की सिंगल बेंच को क्यों कहना पड़ा कि इस मामले की सुनवाई बड़ी बेंच करे। जो भी होगा बात उतनी बड़ी नही थी जितनी बना दी।
इस विमर्श का एक कोण कांग्रेस माह सचिव प्रियंका वाड्रा के उस बयान तक पहुंचा है जहां बिकनी पहनने को महिला स्वतंत्रता के प्रतीक कहा गया है। उन्होंने कहा यह महिला का अधिकार है कि वह बिकनी पहने या हिजाब।
यह तो नही कहा जा सकता है कि किसको क्या पहनना चाहिए लेकिन अगर मानवीय गरिमा का ध्यान रखा जाय तो हम भारतीय संस्कृति की रक्षा करने में अपना योगदान दे सकते हैं।
समाज हम से शुरू होकर हम पर ही खत्म होनेवाला नही है।समाज के उदार समझ के लोगों को समाज का मार्गदर्शन भी करना चाहिए क्योंकि राजनेता वोट की उम्मीद में, धार्मिक नेता धार्मिक कट्टरता में, बॉलीवुड के गंधर्व रसिकप्रियता के कारण सम्यक सोच नही रख पाएंगे इसलिए स्वच्छंदता जब मर्यादित की जाती है तब वह स्वतंत्रता बनती है, स्वतंत्रता दायित्व बोध कराती है जबकि स्वच्छंदता समाज मे उत्सऋंखलता पैदा करती है।