✍🏿राजेश सरकार
एक तरफ सरकार कुमाऊं के रुद्रपुर, पिथौरागढ़ में मेडिकल कॉलेज खोलने के दावे कर रही है वहीं पिछले 10 साल से डॉक्टर दे रहे हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज की मान्यता ही खतरे में आ गई है। राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में 53 प्रतिशत कम फैकल्टी है। यदि मार्च में होने वाले नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के निरीक्षण से पहले इसे पूरा नही किया गया तो करीब 600 से ज्यादा स्टूडेंट्स का भविष्य अधर में लटक जाएगा।
गौरतलब है कि राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी को मई 2010 में सरकारी मेडिकल कॉलेज बनाया गया। एमसीआई ने मेडिकल कॉलेज को उसकी फैकल्टी, ओपीडी आईपीडी, ओटी, लेक्चर थियेटर, लाइब्रेरी समेत कई चीजों को देख कर पांच साल की मान्यता दे रही थी। इस बीच अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज चालू करने के लिए हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से कई सीनियर, जूनियर फैकल्टी का तबादला वहां के लिए कर दिया गया। इतना ही नही यहाँ से कुछ फैकल्टी छोड़ कर भी चली गई हैं, जिसके चलते मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी की भारी कमी हो गई है। इस वजह से अब कॉलेज की मान्यता पर खतरा मंडराने लगा है। बता दे कि (एनएमसी) जो पहले एमसीआई के नाम से जानी जाती थी किसी भी मेडिकल कॉलेज में 10 प्रतिशत फैकल्टी की कमी को गंभीर मानते हुए उसकी मान्यता को चैलेंज कर देती है। ऐसे में 53 प्रतिशत फैकल्टी की कमी वाले हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज की मान्यता कैसे बचेगी यह यक्ष प्रश्न है।
109 स्टाफ है कम: नेशनल मेडिकल कमीशन के अनुसार मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में 109 स्टाफ की कमी है। इनमें सीनियर रेजीडेंट, असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर सभी शामिल हैं। इस कमी का असर पढ़ाई के साथ-साथ कॉलेज की विभिन्न गतिविधियों पर पड़ रहा है।
आचार संहिता भी बन रही बाधक:राज्य में इस समय 10 मार्च तक आचार सहिंता लगी हुई है, वही जानकारों की माने तो मार्च के पहले सप्ताह के बाद मेडिकल कॉलेज का एनएमसी निरीक्षण कर सकती है।और मेडिकल कॉलेज प्रबंधन चाहे तो भी तो नई भर्ती नहीं करवा सकता। इसी लिए इस समस्या का समाधान फिलहाल नजर नही आ रहा है।
शासन को मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी की कमी की जानकारी दी जा चुकी है। एनएमसी का मार्च में दौरा है। फैकल्टी की कमी को दूर करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।- डॉ. अरुण जोशी,प्राचार्य, हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज