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आपकी फेंकी गंदगी, छीन लेगी मछलियों की जिन्दगी, गंगा में घुलता प्लास्टिक मछलियों के लिए खतरा।


सन्दीप थपलियाल
नई दिल्ली। पवित्र गंगा नदी में पाई जाने वाली मछलियों की सेहत के लिए पॉलिमर चिंता का विषय बन गए हैं। देवप्रयाग से हरिद्वार के बीच मछलियों के पेट में हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक, कपड़ों के रेशे, थर्माकोल और फॉम के अवशेष मिले हैं। यानि कि नदी के पानी में बह रहा प्लास्टिक और पॉलिथीन सहित अन्य कूड़ा पानी के साथ जीवों के पेट में जा रहा है। यह खुलासा न मछलियों बल्कि मनुष्य के लिए भी खतरनाक है। एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के DHAB (हिमालयन जलीय जैवविविधता विभाग) के शोध अध्ययन में यह चिंताजनक स्थिति सामने आई है शोधकर्ताओं ने इसे चिंताजनक बताया है।


गंगा और इसकी सहायक नदियों में बड़े पैमाने पर गंदगी डाली जा रही हैं। इसमें पॉलिथीन, प्लास्टिक, बोतलें, बाल और पुराने कपड़ों सहित निर्माण सामग्री का मलबा शामिल है। इसे देखते हुए गढ़वाल विवि के हिमालय जलीय जैव विविधता विभाग ने अलकनंदा नदी में प्रदूषण के प्रभाव का अध्ययन किया था। इसमें यह सामने आया था कि मछली इन प्रदूषित सामग्री को निगल रही है।
इसके बाद विभाग विभागाध्यक्ष डॉ. जसपाल सिंह चौहान और शोध छात्रा नेहा बडोला ने शोध दायरा बढ़ाते हुए गंगा नदी में देवप्रयाग से हरिद्वार के पैच में इसका अध्ययन किया।

Dr Jaspal Singh Chauhan

Neha Badola

शोधकर्ता नेहा ने बताया कि गंगा नदी को दो भागों में विभाजित (देवप्रयाग से ऋषिकेश और ऋषिकेश से हरिद्वार) कर अध्ययन किया गया ।
इस दौरान गंगा नदी में मिलने वाली मछलियों की चार मुख्य प्रजातियों के पेट के नमूने लिए। इनमें टोर, स्कीजोथोरेक्स, गारा और लेबियो शामिल हैं।

चौंकाने वाला तथ्य यह रहा कि सभी मछलियों के भोजन के साथ माइक्रोप्लास्टिक, पॉलीमर, कपड़ों के रेशे, फाइबर और फॉम के अवशेष मिले। लैब में जब यह पुष्ट हो गया कि मछलियों के पेट में माइक्रोप्लास्टिक और अन्य सामग्री है, तो नमूने विश्लेषण के लिए Environmental Oceanography and Climate Lab, BORI, Chattogram, Bangladesh भेजे गए। वहां भी पॉलीमर- माइक्रोप्लास्टिक की पुष्टि हुई। उन्होंने बताया कि मनुष्य के मछलियों के खाने पर इन तत्वों के मानव शरीर में जाने की संभावना है।

डॉ. चौहान ने बताया कि पॉलीथिन प्लास्टिक खत्म नहीं होता है। बल्कि यह छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है। माइक्रोप्लास्टिक 5 मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं। नदी के पानी के साथ यह मछलियों के शरीर में प्रवेश करते हैं या कभी मछलियों के आहार के जरिए यह उनके शरीर में पहुंच रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने पेट में मिले माइक्रोप्लास्टिक का स्रोत पॉलिथीन, कपड़े और बोतल बताया। डा. चौहान ने बताया कि दोनों पैच का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो पाया गया कि हरिद्वार की मछलियों में यह समस्या ज्यादा पाई गई।

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