✍🏿डाक्टर राजेश्वर उनियाल
बंधुओं, कुछ वर्ष पूर्व जब मैं विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष में इसरो के वैज्ञानिकों को हिन्दी की गौरव गाथा सुना रहा था, तो एक वैज्ञानिक ने सहसा मुझसे पूछ लिया कि सर हिन्दी का भविष्य कैसा है ? यह सुनकर तो मैं सहम-सा गया । हिंदी की गौरव गाथा तक तो ठीक है, पर भविष्य कैसा होगा? इस प्रश्न ने मुझे कुछ विचलित-सा कर दिया। आज भले ही हिन्दी विश्वभाषा बन रही है, इसका साहित्य सम्पन्न है, वगैरह वगैरह । परन्तु हिन्दी रूपी वटवृक्ष की शाखाएं जिस प्रकार से मजबूती के साथ काटी जा रही हैं, उससे भविष्य में हिन्दी हालांकि बोलचाल व संपर्क की भाषा अवश्य बनी रहेगी, परन्तु व्यवहार की भाषा निश्चित रूप से अंग्रेजी ही होगी तथा इसका लिखित स्वरूप भी देवनागरी से अधिक रोमन ही प्रचलित रहेगा। कल क्यों? हम तो आज भी यूनिकोड में रोमन में टाइप करते हैं, केवल उसका आउटपुट ही हिंदी में दिखाई देता है।
जो हिन्दी दो दशक पूर्व तक विश्व की दूसरी बड़ी भाषा थी, एक गणना के अनुसार अब यह चौथे नम्बर पर आ गई है । मालूम क्यों ? क्योंकि मैथिली व संथाली आदि अष्टम अनुसूची में आ चुके हैं और शीघ्र ही भोजपुरी व राजस्थानी भी अष्टम अनुसूची में आने वाले हैं । फिर अभी भारत सरकार के पास 38 बोलियां व क्षेत्रीय भाषाएं भी अष्टम अनुसूची के लिए विचाराधीन हैं, जिनमें से 20-22 हिन्दी की बोलियां या क्षेत्रीय भाषाएं हैं । अर्थात व्रज, अवधी, हरयाणवी, हिमाचली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मालवी व मेवाती वगैरह भी अष्टम अनुसूची में वर्णित होने हेतु भारत सरकार के पास विचाराधीन हैं। जब ये सारी 20-22 क्षेत्रीय भाषाएं व बोलियां अष्टम अनुसूची में आ जाएंगी, तो आज जिस हिंदी को अपनी मातृभाषा मानने वाले सन 2011 की भाषायी गणना के अनुसार 121 करोड़ में से 52.83 करोड़ अर्थात 43.63% लोग हैं, तब हिन्दी भाषी कितने प्रतिशत लोग रह जाएंगे ? शायद लगभग 26 प्रतिशत!
ज्ञात हो कि भाषायी जनगणना में हिंदी भाषी में उन सभी को वर्णित किया जाता है जिन्होंने अपनी मातृभाषा हिंदी या हिंदी प्रदेशों की अन्य 56 बोली-भाषाओं को अपनी मातृभाषा चुना है। अब इनमें से भी 20-22 भाषाएं हिंदी से अलग होना चाहती हैं। फिर हिन्दी किस राज्य की या किस देश की भाषा रहेगी ?
जो काम लार्ड मैकाले व उसकी अवैध संतानें भारत में नहीं कर पाई, वह काम हमारे अनजान लोकभाषा प्रेमी आसानी से कर देंगे । आपकी क्षेत्रीय बोलियां तो अष्टम अनुसूची में आ जाएंगी, परंतु हिन्दी की तब क्या दुर्दशा होगी और जब हिन्दी ही नहीं रहेगी तो भोजपुरी, अवधी, मैथिली, गढ़वाली या कुमाऊनी आदि का अस्तित्व क्या रहेगा ? इस पर हमने कभी विचार भी नहीं किया । आज भोजपुरी में लिखित कबीर की वाणी, व्रज में सूर का सूरसागर व अवधि में तुलसी का रामचरितमानस, हिन्दी साहित्य के कारण राष्ट्रीय स्तर के साहित्य बने हुए हैं । कल जब ये साहित्य भी अष्टम अनुसूची के कारण ही हिन्दी से अलग हो जाएंगे, तो पेड़ से टूटे पत्तों की तरह ये भी इधर-उधर बिखर जाएंगे ।
विश्व हिंदी दिवस : विश्व भाल पर हिंदी की बिंदी
हिंदी केवल हिन्दी प्रदेशों की ही भाषा नहीं है, बल्कि यह भारत को आजादी दिलाने वाली भाषा भी है । इससे राष्ट्र एकजुट हुआ है । आज हर भारतवासी हिन्दी पर गर्व करता है । परंतु जब हिन्दी के प्रहरी ही अपने क्षेत्रीय स्वार्थवश या मातृबोली के नाम पर चंद पुरस्कारों के लोभ में हिन्दी का अहित करने लगेंगे, तो निश्चित रूप से आने वाले समय में हिन्दी की क्षेत्रीय बोलियां भी धाराशाही होती जाएंगी । इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज मैथिली भाषा है, जो बीस वर्ष पूर्व हिंदी से अलग होने के बाद ना तो अपने राज़्य में कहीं अपनाई जा रही है और ना ही अब मैथिली साहित्य को अब हिंदी का सहारा मिल पा रहा है।
इसलिए अभी भी समय है कि हम अपनी बोली-भाषाओं का मान रखते हुए हिन्दी का पूरा सम्मान करें । तभी हमारा व हमारी बोलियों का भी सम्मान बचा रहेगा । नहीं तो कहीं ऐसा ना हो कि जो अंग्रेजी हमारे ऊपर हावी हो रही है, वह हमारे भाषाओं की रानी बन जाए और हमारी बोली-भाषाएं नौकरानी की तरह घर के एक कोने में सिसकती रहे ।
इसलिए हमें चाहिए कि हम हिंदी के मामले में क्षेत्रीय क्षुद्रता व पूर्वाग्रहों को त्यागकर राष्ट्रभाषा हिंदी को वैश्विक धरातल पर प्रतिष्ठापित करें।
विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाओं के साथ!