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भगवान राम की तपस्थली है अलकनंदा और भागीरथी का संगम


राजेश भट्ट
देवप्रयाग। अयोध्या राम जन्मभूमि है, वहीं देवप्रयाग राम की तप भूमि के रुप में प्रसिद्ध है। देवप्रयाग सहित आसपास का क्षेत्र ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम के पिता दशरत के नाम से दशरथाचल से लेकर राम की पत्नी माता सीता का विदाई स्थल (विदाकोटी) भी स्थिति है। इस स्थान को आप मिनी अयोध्या भी कह सकते है।
अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम के शीर्ष ऊपर पर यह श्री रघुनाथ जी का यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 8 वी शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था। इस मंदिर को नागर शैली से बनाया गया है। श्री रघुनाथ मंदिर के पुजारी समीर भट्ट ने बताया कि रावण वध के बाद भगवान श्रीराम ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिये यहाँ घोर तपस्या की थी। यहाँ भगवान श्री राम एकल मूर्ति के स्वरूप में विराजमान है। यहाँ भगवान का नाभि वाला हिस्सा है जिसकारण इसको सुदर्शन क्षेत्र भी कहा जाता है। गौरतलब है कि मंदिर तक पहुचने के लिये 108 सीढियों से होकर जाना पड़ता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति हर सीढ़ी पर राम नाम जपकर जाता है उसकी मन्नत पूर्ण होती है।
….. पांच अवतारों से देवप्रयाग का संबंध
देवप्रयाग। देवप्रयाग भगवान विष्णु के श्रीराम समेत पांच अवतारों का संबंध माना गया है। जिस स्थान पर वे वराह के रूप में प्रकट हुए, उसे वराह शिला और जहां वामन रूप में प्रकट हुए, उसे वामन गुफा कहते हैं। देवप्रयाग के निकट नृसिंहाचल पर्वत के शिखर पर भगवान विष्णु नृसिंह रूप में शोभित हैं। इस पर्वत का आधार स्थल परशुराम की तपोस्थली थी, जिन्होंने अपने पितृहंता राजा सहस्रबाहु को मारने से पूर्व यहां तप किया। इसके निकट ही शिव तीर्थ में श्रीराम की बहन शांता ने श्रृंगी मुनि से विवाह करने के लिए तपस्या की थी। श्रृंगी मुनि के यज्ञ के फलस्वरूप ही दशरथ को श्रीराम पुत्र के रूप में प्राप्त हुए।
… जटायु ने भी किया था तप
देवप्रयाग। श्रीराम के गुरु भी इसी स्थान पर रहे थे, जिसे वशिष्ठ गुफा कहते हैं। गंगा के उत्तर में एक पर्वत को राजा दशरथ की तपोस्थली माना जाता है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गिद्धांचल कहते हैं। यह स्थान जटायु की तपोभूमि थी।
…. पलस्वाड़ी में माता सीता ले ली थी भूसमाधि
देवप्रयाग। कहा जाता है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने माता सीता को त्याग दिया था, तो देवप्रयाग के समीप विदाकोटी गांव तक लक्ष्मण सीता को छोड़ने आए थे। यहां से आगे सीता माता सीताकोटी गांव गई। जबकि पलस्वाड़ी गांव में माता सीता ने भूसमाधि ली थी।

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