‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ सिर्फ फिल्म तक ही सीमित नहीं हैं। उत्तराखंड में ये किसी सरकारी अस्पताल में बाकायदा डॉक्टर बने आपका ईलाज करते भी मिल सकते हैं। ऐसा ही एक मामला पकड़ में आया है रुड़की स्थित सरकारी अस्पताल में, जहां बिना डिग्री के ही ‘फर्जी’ डॉक्टर लोगों के ईलाज के लिए नियुक्त किया गया। मामला पकड़ में आने के बाद उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल के डिप्टी रजिस्ट्रार की ओर से देहरादून निवासी इस ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के खिलाफ रायपुर थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया है।
थाना रायपुर में डांडा लखौंड देहरादून स्थित उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल के डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. डीडी चौधरी की ओर से दी गई तहरीर में शिकायत की गई है कि अनिल कुमार पुत्र प्रेमलाल नौटियाल निवासी लोअर नकरौंदा (देहरादून) वर्तमान में रुड़की स्थित उपजिला चिकित्सालय में चिकित्सा अधिकारी के तौर पर नियुक्त है।
उसने उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल में अनुचित लाभ प्राप्त करने के आशय से इरादतन कूटरचित दस्तावेजों को असली के रूप में प्रयोग करते हुए धोखाधड़ी से फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बतौर चिकित्सक अपना गलत पंजीकरण करवाया। यही नहीं, उसने गैरकानूनी रूप से स्वास्थ्य विभाग में नौकरी प्राप्त कर ली। पुलिस के अनुसार, तहरीर के आधार पर थाना रायपुर में आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी समेत विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। मामले की जांच मयूर विहार चौकी प्रभारी मानवेंद्र गुसाईं को सौंपी गई है।
ऐसे पकड़ में आया मामला: जानकारी के अनुसार, फर्जी डॉक्टर का मामला हाल ही में तब पकड़ में आया, जब रुड़की के उपजिला अस्पताल के सीएमएस को अनिल नौटियाल पर शक हुआ। इस शक की वजह यह थी कि उसे अस्पताल में डॉक्टरी से संबंधित जो भी काम सौंपा गया, वह उसे नहीं कर पा रहा था। इस पर सीएमएस ने मामले की सूचना मेडिकल काउंसिल को दी। इसी साल प्रदेश में हुई सरकारी डॉक्टरों की भर्ती में अनिल भी चयनित होने के बाद नियुक्ति पा गया। वह रुड़की में सरकारी अस्पताल में तैनाती पाने से बचता रहा और इसके बजाय नगर निगम स्वास्थ्य अधिकारी के तौर पर तैनाती के लिए उच्चस्तर से दबाव बनाए हुए था।
हालांकि, मामला संदिग्ध होने के बाद उसे नगर निगम में तैनाती देने के बजाय रुड़की अस्पताल में ही रखा गया। काउंसिल के डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. डीडी चौधरी के अनुसार, इस मामले में उड़ीसा स्थित उत्कल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को अनिल की डिग्रियों की पुष्टि के संबंध में लिखा गया। उसने इस विश्वविद्यालय की एमबीबीएस की डिग्री दर्शायी थी। लेकिन, रजिस्ट्रार ने ऐसे किसी भी व्यक्ति को इस तरह की डिग्री जारी होने की बात से इनकार कर दिया। डिग्रियां फर्जी होने की पुष्टि के बाद अनिल के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया।
आखिर कैसे कर लिया गया सरकारी नौकरी के लिए चयन :
रुड़की उपजिला अस्पताल में बतौर डॉक्टर नियुक्ति पाए अनिल कुमार को चयनित करने वाले सलेक्शन बोर्ड और उसके सदस्यों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। आखिर, जो व्यक्ति डॉक्टरी पढ़ा ही नहीं, उसने इंटरव्यू के दौरान बोर्ड के सवालों के जवाब कैसे दिए? क्या उसका चयन किसी ऊपरी दबाव में या किसी ‘अन्य’ वजह से कर लिया गया। चयन बोर्ड में शामिल लोग अगर एक ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ को सरकारी डॉक्टर के तौर पर चयनित कर सकते हैं, तो ऐसे में उनकी खुद की योग्यता पर भी सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा है कि यदि नियुक्तियों और चयन बोर्ड की विस्तृत जांच कराई जाए, तो कई नए तथ्य सामने आ सकते हैं।
मेडिकल काउंसिल की लापरवाही भी उजागर :इस पूरे मामले में उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल की घोर लापरवाही भी सामने आई है। दरअसल, काउंसिल में रजिस्ट्रेशन से पूर्व दस्तावेजों की बारीकी से जांच की जाती है। जानकारी के अनुसार, जून-2020 में अनिल ने काउंसिल में बतौर डॉक्टर रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया।
उसकी डिग्रियों पर प्रथमदृष्टया संदेह होने पर उस वक्त भी उत्कल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को डिग्री की पुष्टि के लिए पत्र भेजा गया। वहां से लंबे समय तक कोई जवाब नहीं आया और इसी बीच जून माह में ही उसका रजिस्ट्रेशन कर दिया गया। अब जब रुड़की उपजिला अस्पताल के सीएमएस ने काउंसिल को सूचित किया, तो उसके बाद पुन: उत्कल विश्वविद्यालय को लिखा गया। वहां से जो जवाब आया, उसने अनिल की डॉक्टरी की डिग्री के साथ ही मेडिकल काउंसिल से लेकर सरकारी डॉक्टरों के सलेक्शन बोर्ड तक की कलई खोलकर रख दी।