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विश्व रेडियो दिवस-भूली हुई यादें मुझे इतना न सताओ


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पार्थसारथि थपलियाल

ये आकाशवाणी है!
अब आप देवकी नंदन पांडेय से समाचार सुनिए-….. ये बी बी सी लंदन है… आजकल.. प्रस्तुतकर्ता -भारत रत्न भार्गव….ये श्रीलंका ब्राडकास्टिंग कॉर्पोरेशन का विदेश व्यापार विभाग है…. ये आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम है-विविधभारती…..
विविधभारती की विज्ञापन प्रसारण सेवा का ये दिल्ली केंद्र है- “संगम”… ये विविध भारती है-हवा महल।…वंदनवार, चित्रशाला, रंगवाली, भूले बिसरे गीत, अनुरोधगीत, मनचाहे गीत, गीतमालिका, जयमाला, मिलन यामिनी मधुरगीतं, साज़ और आवाज़, आपकी फरमाइश।
हाँ! तो बहनों! और भाइयों! बिनाका गीतमाला के अगले एपिसोड में आप से फिर मुलाकात होगी-अमीन सायानी को इज़ाजत दीजिए..
आदि आदि सैकड़ों उद्घोषणाएं रेडियो श्रोताओं को याद होंगी। रात 10 बजे छायागीत में बजने वाले सजीले स्वप्नीले ख्वाबों और खयालों के गीत-
1. खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू… खत लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, ओ जान जाएंगे, पहचान जाएंगे.. (फ़िल्म-आये दिन बाहर के)
2 तस्वीर तेरी दिल मे जिस दिन से उतारी है ( फ़िल्म-माया)
3. तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा हूँ (सावन को आने दो)
4. कभी कभी मेरे दिल मे खयाल आता है, कि जैसे
5. कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की, बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी, बहुत खूब सूरत (फ़िल्म-शंकर हुसैन)
6. हम इंतज़ार करेंगे, हम इंतज़ार करेंगे तेरा कयामत तक.. खुदा करे कि कयामत हो और तू आये.. (बहू बेगम)

यही नही उस दौर को याद करें जब 1965 और 1971 के भहरत पाक युद्ध के समय लोग रेडियो के इर्द गिर्द बैठकर समाचार सुनते और चर्चा करते..1975 का वह दौर जब छोटे छोटे ट्रांजिस्टर लोगों की जेबों में होते थे और क्रिकेट कमेंट्री सुना करते थे.. राह चलते अनजान आदमी से भी पूछ लेते सुनील गावस्कर ने शतक लगा दिया? काली चरण ने किसे आउट किया?
फिल्मी गीतों का वो लोकप्रिय होने का दौर… एक से बढ़कर एक गीतकार..संगीतकार…गायक सबसे बड़ी बात की बात भारत की होती थी।
1. है प्रीत जहां की रीत.. भारत का रहनेवाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ .. (फ़िल्म-पूरब और पश्चिम)
2. मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरा मोती..(उपकार)
3. ये चमन हमारा अपना है..(अब दिल्ली दूर नही)
जैसे गीत लोगों की ज़ुबान पर होते थे।

यही वह दौर था जब श्रोताओं में अपने नाम सुनने की दीवानगी थी। झुमरी तलैया, राजनांदगांव, मजनू का टीला, नेपाल गंज, पठानकोट, डिगाडी कलां, महोबा, नागदा, उज्जैन, रायपुर छत्तीसगढ़ जैसे दर्जनों जगह के नाम जिनका अन्यथा कोई बड़ा नाम न होता, उन्हें श्रोताओं ने पहचान दी।
आकाशवाणी के उद्घोषकों और समाचार वाचकों के उच्चारण मानक माने जाते थे। स्वनाम धन्य-अशोक बाजपेई, मनोजकुमार मिश्र, अनादि मिश्र, जयनारायण प्रसाद सिंह, देवकी नंदन पांडेय, विनोद कश्यप, पंचदेव पांडेय, अज़ीज़ हसन,अश्वनी त्यागी, अखिल मित्तल, हरीश संधू आदि अनेक नाम ऐसे हैं जिन्हें हम अपने करीब पाते हैं। क्षेत्रीय आकाशवाणी केंद्रों में उद्घोषकों और प्रस्तुत कर्ताओं को श्रोता जो सम्मान देते थे उसकी कल्पना आज के दौर के लोग कर भी नही सकते हैं। एक दौर में आकाशवाणी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के ध्येय वाक्य पर काम करने वाली संस्था स्वयं रुंधे गले से बोल रही है। एक समय 250 से अधिक आकाशवाणी केन्द्रों से प्रतिभाओं को निखरने और राष्ट्र को संगठित और सुसंस्कृत होनेका अवसर मिलता था। कहानीकार, गीतकार, कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, कलाकार खासकर नाटक कलाकार और लोक कलाकारों को पल्लवित होने का अवसर मिलता था। आज एक एक कर दरवाजे बंद हो रहे हैं।

आज 13 फरवरी है। इस दिन को विश्व रेडियो दिवस के रूप में 2012 से मनाया जाने लगा है। 13 फरवरी 1946 को संयुक्तराष्ट्र रेडियो से प्रथम प्रसारण आज के दिन हुआ था, इसलिए दिसम्बर 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिन को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसी बहाने हैम भी रेडियो की जुगाली ले लें कि हमारा एक प्यारा दोस्त था रेडियो… हम छोड़ चले हैं महफ़िल को, कभी याद आये तो मत रोना …इस दिल को तसल्ली दे लेना, घबराए कभी तो मत रोना…

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