जहां वेद पाठो के स्वर सुनाई देने थे, वहां नारेबाजी सुनाई दे रही है। तीर्थ पुरोहितों की वाणी पर मंत्रोच्चारण के बजाय पीएम/सीएम के खिलाफ नाराजगी के बोल हैं। जिस केदारनाथ में 2 साल पहले मोदी जिंदाबाद के नारे गूंजे थे, वहां मोदी सरकार विरोध में नारे गूंज रहे हैं।
दरअसल, मामला चारधाम तीर्थ पुरोहितो और हक हकूक धारियों के जीवन यापन से जुड़ा है। भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चारधामों के पंडे पुजारियों के सदियों से चले आ रहे एकाधिकार को ओवरटेक करते हुए देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड बना डाला। इससे पहले बदरी केदार मंदिर समिति थी, जो बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिरों का प्रबंधन देखती थी। साथ ही गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए भी अलग अलग प्रबंधन समीतियां थी। इन समितियों के जरिए मंदिरों का हिसाब किताब आदि प्रबंधन भले ही सरकार देखती थी, पर पंडे पुजारियों का बोलबाला ही चलता था।
देवस्थानम बोर्ड का शुरू से ही विरोध हुआ। बोर्ड का दायरा बढ़कर राज्य के करीब सभी मंदिरों पर होने से इन मंदिरों पर हक की बात आने लगी। बीजेपी के नेता भी तीर्थ पुरोहितों को बोर्ड का मकसद न समझा पाए। भाजपा के इस दौरान 3 मुख्यमंत्री आ गए पर कोई हल नहीं निकल सका है। यहां तक कि गढ़वाल सांसद तीर्थ सिंह रावत को जब मुख्यमंत्री बनाया तो उन्होंने देवस्थानम बोर्ड भंग करने की बात की, लेकिन दूसरी तरफ बोर्ड की बैठक कर पुरोहितों को और भड़का दिया।
चारधाम तीर्थ पुरोहित सरकार से आर पार की लड़ाई में हैं, उन्हे देवस्थानम बोर्ड किसी भी हालत में मंजूर नहीं है। चारधाम तीर्थ पुरोहित हक हुकूक धारी महापंचायत के बैनर तले तीर्थ पुरोहित चारों धामों में आंदोलनरत हैं। भारी बारिश में भी इनका आंदोलन जारी रहता है।
बोर्ड को खत्म करने की मांग को लेकर चारधाम तीर्थपुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत समिति ने 17 अगस्त के बाद पूरे प्रदेश में सरकार के खिलाफ बिगुल बजाने का एलान किया है।
तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक वह वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी बोर्ड को निरस्त करने की मांग कर चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री ने हाई पावर कमेटी बनाकर इसके समाधान करने की बात कही है। जो पंडा पुरोहितों को मंजूर नहीं है।
पंडा पुरोहित समाज की यह लड़ाई अब राजनीतिक रूप ले चुकी है। भारतीय जनता पार्टी को सबक सिखाने की कसम खाकर का पार्टी से जुड़े लोगों ने त्यागपत्र देने शुरू कर दिए हैं। तीर्थ पुरोहितों ने मांग पूरी न होने पर उग्र आंदोलन के साथ आमरण अनशन की चेतावनी भी दी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी बीजेपी की हार सबब बनती है या सरकार इनसे बेपरवाह रहती है।