विश्विद्यालय स्थापना के लिए समूचे गढ़़वाल मंडल में हुए थे आंदोलन
प्रीति एस थपलियाल
श्रीनगर। एक दिसंबर 1973 को स्थापित हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय 50 साल (स्वर्ण जयंती) का हो गया है। विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए तीन साल तक चले आंदोलन में गढ़वाल मंडल के लोगों ने भूख हड़ताल और गिरफ्तारियां दी। स्थापना काल से अब तक लाखों छात्र-छात्राएं यहां से डिग्री प्राप्त कर चुके हैं। इनमें से कई पुरातन छात्र देश प्रदेश में महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं।
पूर्व में उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के छात्रों को इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए कानपुर, आगरा, और लखनऊ जैसे शहरों में जाना पड़ता है। ऐसे में गढ़वाल के केंद्र बिंदु श्रीनगर में विश्वविद्यालय स्थापना के लिए वर्ष 1971 से 1973 के बीच तीन साल तक आंदोलन चला। आंदोलन के लिए वर्ष 1971 में उत्तराखंड विश्वविद्यालय केंद्रीय संघर्ष समिति का गठन किया गया। इसके संरक्षण की जिम्मेदारी स्वामी मन्मथन और स्वामी ओंकारानंद को दी गई। समिति में प्रेम लाल वैद्य, प्रताप सिंह पुष्पवाण, विद्या सागर नौटियाल, कृष्णानंद मैठाणी, वीरेंद्र पैन्यूली, कुंंज विहारी नेगी, जयदयाल अग्रवाल, ऋषि बल्लभ सुंंदरियाल और कैलाश जुगराण आदि को जिम्मेदारियां सौंपी गई।
26 जुलाई को 1971 को विश्वविद्यालय की मांग के लिए श्रीनगर में मातृ शक्ति ने भूख हड़ताल की। 16 सितंबर 1971को विश्वविद्यालय की मांग के लिए समूचा गढ़वाल मंडल बंद कराया गया। विश्वविद्यालय के लिए उत्तरकाशी, पौड़ी, देहरादून, चमोली और टिहरी जिलों मेंं आंदोलन हुए। विभिन्न स्थानों में सत्याग्रहियों ने प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तारी दी। स्वामी मन्मथन और कुंज विहारी नेगी को गिरफ्तार करते हुए रामपुर जेल भेज दिया गया। जनता का आंदोलन रंग लाया। उत्तर प्रदेश शासन ने 23 नवम्बर 1973 को श्रीनगर में राज्य विश्वविद्यालय स्थापना की अधिसूचना जारी की। एक दिसंबर 1973 से विश्वविद्यालय विधिवत रुप से संचालित होने लगा।
— विश्वविद्यालय के लिए स्थगन प्रस्ताव श्रीनगर। श्रीनगर में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 16 सितंबर 1971 में उत्तर प्रदेश विधान सभा में 23 विधायक विधान सभा के नियम 51 के अनुसार कार्य स्थगन प्रस्ताव भी लाए थे। विधायकों ने तत्काल लोक महत्व के प्रश्न पर विचार करने की मांग की थी।
—तीन परिसर हो रहे संचालित श्रीनगर स्थापना काल में बिड़ला परिसर श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय के अधीन था। इसके बाद पौड़ी और टिहरी मेें भी परिसर स्थापित किए गए। जबकि बिड़ला परिसर का विस्तार अलकनंदा नदी पार चौरास में किया गया। वर्ष 1989 में गढ़वाल विश्वविद्यालय का नामकरण पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के नाम पर कर दिया गया।
–2009 में बना केंद्रीय विश्वविद्यालय
श्रीनगर। एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय को 15 जनवरी 2009 को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। विवि को में कई ऐसे कोर्स हैं, जो अपने आप में विशेष हैं।
— पहले कुलपति बीडी भट्ट
श्रीनगर। बीडी भट्ट गढ़़वाल विश्वविद्यालय के पहले कुलपति नियुक्त हुए थे। वह वर्ष 1973 से 1977 तक कुलपति रहे। जबकि मेजर एसपी शर्मा यहां के पहले कुलसचिव रहे।
—- चार मुख्यमंत्री दिए जनता को
श्रीनगर। गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के पूर्व छात्र आज राजनीति के मंच पर चमक रहे हैं। विवि ने उत्तराखंड को तीन और उत्तर प्रदेश को एक मुख्यमंत्री दिया है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत गढ़वाल विवि के छात्र रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी गढ़वाल विवि से स्नातक किया है।